Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, १, २.] कदिअणियोगद्दारे देसोहिणाणपरूवणा
[१५ भागहारो होदि त्ति कुदो णबदे ? आइरियपरंपरागदुवदेसादो। ओरालियसरीरं सविस्ससोवचयं जहण्णुक्कस्स-तव्वदिरित्तभेएण तिविहं । तत्थ किं' घणलोगेण छिज्जदि ? ण जहण्णं ण उक्कस्सदव्वं, किंतु तव्वदिरित्तदव्वं जिणदिट्ठभावं घणलोगेण छिज्जदि । कुदो ? खविदगुणिदविसेसणविसिट्ठदव्वणिद्देसाभावादो । ण च संखाए चेव एस णियमो त्ति पच्चवट्ठाणं काहुँ जुत्तं, एत्थ वि संखाहियारादो । जहण्णोहिणाणं किमेदमेव दव्वं जागदि अह अण्णं पि ? जदि एदमेव जाणदि तो अप्पण्णो ओहिखेत्तभंतरे ट्ठियाणं जहण्णदबक्खंधादो परमाणुत्तरदुपरमाणुत्तरादिकमेण ट्ठियखंधाणमपरिच्छेदयं होज्ज । ण च एवं, सगखेत्तभंतरे ट्ठियाणमणतभेदभिण्णखंधाणमपरिच्छित्तिविरोहादों। अह परमाणुत्तरे वि खंधे जइ जाणइ णेदमेव जहण्णोहिदव्वमण्णेसि पि जहण्णोहिदव्वाणं दंसणादो त्ति ? को एवं भणदि जहण्णोहिदव्व
भागहार होता है, यह कहांसे जाना जाता है ?
समाधान-- यह आचार्यपरम्परागत उपदेशसे जाना जाता है ।
शंका- औदारिकशरीर विनसोपचय सहित जघन्य, उत्कृष्ट और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकार है। उनमें किसे घनलोकसे भाजित किया जाता है ?
समाधान-न तो जघन्य द्रव्यको और न उत्कृष्ट द्रव्यको घनलोकसे भाजित किया जाता है, किन्तु जिन भगवान्से देखा गया है स्वरूप जिसका ऐसा तद्व्यतिरिक्त द्रव्य घनलोकसे भाजित किया जाता है । कारण कि क्षपित व गुणित विशेषणसे विशिष्ट द्रव्यके निर्देशका अभाव है। संख्यामें ही यह नियम है ऐसा प्रत्यवस्थान (समाधान) करना भी उचित नहीं है, क्योंकि, यहां भी संख्याका अधिकार है।
शंका-जघन्य अवधिज्ञान क्या इसी द्रव्यको जानता है अथवा अन्यको भी ? यदि इसे ही जानता है तो अपने अवधिक्षेत्रके भीतर स्थित जघन्य द्रव्यस्कन्धसे एक परमाणु अधिक, दो परमाणु अधिक इत्यादि क्रमसे स्थित स्कन्धोंका ग्राहक न हो सकेगा। और ऐसा है नहीं, क्योंकि, अपने क्षेत्रके भीतर स्थित अनन्त भेदोंसे भिन्न स्कन्धोंके ग्रहण न होनेका विरोध है । यदि परमाणु अधिक स्कन्धोंको भी वह जानता है तो यही जघन्य अवधिद्रव्य न होगा, क्योंकि, अन्य भी जघन्य अवधिद्रव्य देखे जाते हैं ?
समाधान -ऐसा कौन कहता है कि जघन्य अवधिद्रव्य एक प्रकार है। किन्तु
१ प्रतिषु 'तं ' इति पाठः ।
२ तज्जघन्यपुद्गलस्कंधस्योपरि एक-द्वयादिप्रदेशोत्तरपुद्गलस्कंधान् न जानातीति न वाच्यम्, सूक्ष्मविषयज्ञानस्य स्थूलावबोधने सुघटत्वात् । गो. जी. ३८२,जी.प्र. टीका.
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