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जैन विद्या के आयाम खण्ड - ६
*अध्यक्ष - श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन ओसवाल संघ, शाजापुर (म०प्र०)
शब्द शिल्पी, बेजोड़ सम्पादक एवं शोधपुरोधा
उदय नागोरी*
सारल्य, सहजता, आत्मीयता एवं सादगी के प्रतीक सरस्वती के वरदपत्र, संपादन क्षेत्र में प्रथक पहचान बनाने । वाले एवं सहस्राधिक ग्रन्थों-सूत्रों की अतल गहराई में पैठकर शोध रत्न हस्तगत करने में सक्षम, शोध पुरोधा डॉ० सागरमल जैन साहित्यिक जगत् में विशिष्ट स्थान रखते हैं ।
जैनधर्म-दर्शन-साहित्य के दर्जनों शोधार्थियों के निदेशक रह चुके डॉ. जैन अहं से कोसों दूर, आडम्बर से अछूते व पदलिप्सा/लोकेषणा से मुक्त हैं । सामाजिक/धार्मिक/सांस्कृतिक/साहित्यिक गोष्ठी/विचार-विनिमय/मार्गदर्शन हेतु आपके द्वार सदैव अनावृत रहे हैं । समाज उन्नयन, दार्शनिक शोध एवं धर्म को जीवन से जोड़ने के लिये कोई योजना या प्रस्ताव हो तो कभी भी मिलने के लिए आप समय निकाल ही लेते हैं। न कोई एपांइटमेन्ट न औपचारिकता है इनके यहाँ ।
आपके सम्पादकत्व में 'श्रमण ने अपना पृथक स्थान बनाया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में और अनेक लेखकों ने आपसे प्रेरणा लेकर लेखन-क्षेत्र में अपने चरण ही नहीं बढ़ाये, साफल्य की सीढ़ियां भी पार की । अछूते, अज्ञात, अल्पज्ञात विषयों पर विस्तृत, शोधपरक, शास्त्र सम्मत प्रस्तुति से इसकी प्रसार-संख्या तो बढ़ी ही, यह सर्वत्र आशातीत समादृत है ।
जैनधर्म/दर्शन के गूढ़ विषयों पर विदेशों में वार्ताओं/परिचर्चाओं एवं गोष्ठियों के माध्यम से डॉ० जैन ने अपनी अनूठी छाप छोड़ी है । श्रोताओं के मन में कुछ अस्पष्टता या संदिग्धता लगती तो आप अपने प्रमाण व तों से उन्हें संतुष्ट कर देते हैं,जो स्वयं में विशिष्ट गुण है । लेकिन आप स्पष्ट वक्ता हैं अत: जहाँ भी सामाजिक साहित्यिक/धार्मिक संस्थाओं में शैथिल्य, अव्यवस्था या ध्येय के प्रति निष्ठा नहीं पाई आपने पदाधिकारियों को सजग किया और कार्य सम्पादन हेतु तत्पर भी।
विद्यापीठ ही नहीं, समग्र जैन समाज, साहित्य-जगत् आपसे गौरवान्वित है। यही अपेक्षा है कि आप शतायु हों और निरन्तर अपना शोधामृत ज्ञान पीपासुओं को मुक्तहस्त से लुटाते रहें ।
*सेठिया जैन ग्रन्थालय, नरोठी सेठिया मोहल्ला, बीकानेर - ३३४००५
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