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जैन विद्या के आयाम खण्ड-६
विक्रम संवत् पर आधारित है। यह विक्रम संवत् के ९० वर्ष बाद वर्ष पश्चात् हुआ था। ज्ञातव्य है कि “दीघनिकाय" के इस प्रसंग में जहाँ प्रचलित हुआ था।
निर्ग्रन्थ ज्ञातृपूत्र आदि छहों तीर्थंकरों को अर्धवयगत कहा गया, वहाँ गौतम ६. पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार२१ ई.पू. ५२८- इन्होंने अनेक तर्को बुद्ध की वय के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहा गया है।२९ के आधार पर परम्परागत मान्यता को पुष्ट किया।
किन्तु उपरोक्त तथ्य के विपरीत “दीघनिकाय" में यह भी सूचना ७. मुनि श्री कल्याणविजय२२ ई.पू. ५२८- इन्होंने भी परम्परागत मिलती है कि महावीर बुद्ध के जीवनकाल में ही निर्वाण को प्राप्त हो मान्यता की पुष्टि करते हुए उसकी असंगति के निराकरण का प्रयास गये थे। “दीघनिकाय" के वे उल्लेख निम्नानुसार हैंकिया है।
ऐसा मैंने सुना-एक समय भगवान् शाक्य (देश) में वेधन्जा ८. प्रो. पी.एच.एल इगरमोण्ट २३ ई.पू. २५२- इनके तर्क का आधार नामक शाक्यों के आम्रवन प्रासाद में विहार कर रहे थे। जैन परम्परा में तिष्यगुप्त की संघभेद की घटना का जो महावीर के उस समय निगण्ठ नातपुत्त (=तीर्थंकर महावीर) की पावा में जीवनकाल में उनके कैवल्य के १६वें वर्ष में घटित हुई, बौद्ध संघ में हाल ही में मृत्यु हुई थी। उनके मरने पर निगण्ठों में फूट हो गई थी, तिष्यरक्षिता द्वारा बोधि वृक्ष को सुखाने तथा संघभेद की घटना से जो दो पक्ष हो गये थे, लड़ाई चल रही थी, कलह हो रहा था। वे लोग एकअशोक के राज्यकाल में हुई थी समीकृत कर लेना है।
दसूरे को वचन-रूपी वाणों से बेधते हुए विवाद करते थे-“तुम इस ९. वी.ए. स्मिथ २४ ई.पू.५२७- इन्होंने सामान्यतया प्रचलित धर्मविनय (धर्म) को नहीं जानते, मैं इस धर्मविनय को जानता हूँ। तुम अवधारण को मान्य कर लिया है।
भला इस धर्मविनय को क्या जानोगे? तुम मिथ्या प्रतिपन्न हो (तुम्हारा १०. प्रो. के. आर. नारमन२५ लगभग ई.पू. ४००- भगवान समझना गलत है), मैं सम्यक् -प्रतिपन्न हूँ। मेरा कहना सार्थक है और महावीर की निर्वाण तिथि का निर्धारण करने हेतु जैन साहित्यिक स्त्रोतों तुम्हारा कहना निरर्थक। जो (बात) पहले कहनी चाहिये थी वह तुमने पीछे के साथ-साथ हमें अनुश्रुतियों और अभिलेखीय साक्ष्यों पर भी विचार कही और जो पीछे कहनी चाहिये थी, वह तुमने पहले की। तुम्हारा वाद करना होगा। पूर्वोक्त मान्यताओं में कौन सी मान्यता प्रामाणिक है, इसका बिना विचार का उल्टा है। तुमने वाद रोपा, तुम निग्रह-स्थान में आ गये। निश्चय करने के लिये हम तुलनात्मक पद्धति का अनुसरण करेंगे और इस आक्षेप से बचने के लिये यत्न करो, यदि शक्ति है तो इसे सुलझाओ। यथासम्भव अभिलेखीय साक्ष्यों को प्राथमिकता देंगे।
मानो निगण्ठों में युद्ध (बध) हो रहा था। भगवान महावीर के समकालिक व्यक्तियों में भगवान बुद्ध, निगण्ठ नातपुत्त के जो श्वेत-वस्त्रधारी गृहस्थ शिष्य थे, वे भी बिम्बसार, श्रेणिक और अजातशत्रु कुणिक के नाम सुपरिचित हैं। जैन निगण्ठ के वैसे दुराख्यात (ठीक से न कहे गये), दुष्प्रवेदित (ठीक से स्रोतों की अपेक्षा इनके सम्बन्ध में बौद्ध स्रोत हमें अधिक जानकारी प्रदा न साक्षात्कार किये गये), अ-नैर्याणिक (पार न लगाने वाले), अन्करते हैं। जैन स्रोतों के अध्ययन से भी इनकी समकालिकता पर कोई उपशम-संवर्तनिक (न-शान्तिगामी), अ-सम्यक् -संबुद्ध-प्रवेदित (किसी सन्देह नहीं किया जा सकता है। जैन आगम साहित्य बुद्ध के जीवन वृत्तान्त बुद्ध द्वारा न साक्षात् किया गया), प्रतिष्ठा (नीव)-रहित भिन्न-स्तूप, के सम्बन्ध में प्राय: मौन हैं, किन्तु बौद्ध त्रिपिटक साहित्य में महावीर आश्रयरहित धर्म में अन्यमनस्क हो खिन और विरक्त हो रहे थे।३०
और बुद्ध की समकालिक उपस्थिति के अनेक सन्दर्भ हैं। किन्तु यहाँ हम इस प्रकार हम देखते हैं कि जहाँ एक ओर त्रिपिटक साहित्य उनमें से केवल दो प्रसंगों की चर्चा करेंगे। प्रथम प्रसंग में दीघनिकाय का में महावीर को अधेड़वय का कहा गया है, वहीं दूसरी ओर बुद्ध के वह उल्लेख आता है जिसमें अजातशत्रु अपने समय के विभिन्न धर्माचार्यों जीवनकाल में उनके स्वर्गवास की सूचना भी है। इतना निश्चित है कि से मिलता है। इस प्रसंग में अजातशत्रु का महामात्य निर्ग्रन्थ ज्ञातृपुत्र के दोनों बातें एक साथ सत्य सिद्ध नहीं हो सकती। मुनि कल्याणविजय जी सम्बन्ध में कहता है-“हे देव! ये निर्ग्रन्थ ज्ञातृपुत्र संघ और गण के स्वामी आदि ने बुद्ध के जीवनकाल में महावीर के निर्वाण सम्बन्धी अवधारणा हैं, गण के आचार्य हैं, ज्ञान, यशस्वी तीर्थंकर हैं, बहुत से लोगों के को भ्रान्त बताया है, उन्होंने महावीर के कालकवलित होने की घटना को श्रद्धास्पद और सज्जन मान्य हैं। ये चिरप्रव्रजित एव अर्धगतवय (अधेड़) उनकी वास्तविक मृत्यु न मानकर, उनकी मृत्यु का प्रवाद माना है। जैन हैं।२६ तात्पर्य यह है कि अजातशत्रु के राज्यासीन होने के समय महावीर आगमों में भी यह स्पष्ट उल्लेख है कि उनके निर्वाण के लगभग १६ लगभग ५० वर्ष के रहे होंगे क्योंकि उनका निर्वाण अजातशत्रु कुणिक के वर्ष पूर्व उनकी मृत्यु का प्रवाद फैल गया था जिसे सुनकर अनेक जैन राज्य के २२वें वर्ष में माना जाता है। उनकी सर्व आयु ७२ वर्ष में से २२ श्रमण भी अश्रुपात करने लगे थे। चूँकि इस प्रवाद के साथ महावीर के वर्ष कम करने पर उस समय वे ५० वर्ष के थे-यह सिद्ध हो जाता है।२७ पूर्व शिष्य मंखलीगोशाल और महावीर एवं उनके अन्य श्रमण शिष्यों जहाँ तक बुद्ध का प्रश्न है वे अजातशत्रु के राज्यासीन होने के ८वें वर्ष में के बीच हुए कटु-विवाद की घटना जुड़ी हुई थी। अत: दीघनिकाय का निर्वाण को प्राप्त हुए, ऐसी बौद्ध लेखकों की मान्यता है।२८ इस आधार प्रस्तुत प्रसंग इन दोनों घटनाओं का एक मिश्रित रूप है। अत: बुद्ध के पर दो तथ्य फलित होते हैं- प्रथम महावीर जब ५० वर्ष के थे, तब बुद्ध जीवनकाल में महावीर की मृत्यु के दीघनिकाय के उल्लेख को उनकी (८०-८) ७२ वर्ष के थे अर्थात् बुद्ध, महावीर से उम्र में २२ वर्ष बड़े थे। वास्तविक मृत्यु का उल्लेख न मानकर गोशालक के द्वारा विवाद के पश्चात् दूसरे यह कि महावीर का निर्वाण, बुद्ध के निर्वाण के (२२-८=१४) १४ फेंकी गई तेजोलेश्या से उत्पन्न दाह ज्वार जन्य तीव्र बीमारी के फलस्वरूप
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