Book Title: Sagarmal Jain Abhinandan Granth
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 842
________________ वहुकयाने एताये मे ७१० जैन विद्या के आयाम खण्ड-६ २. हेवं आहा (१) धंमे साधू कियं चु धमे ति (२) अपासिनवे मे आवुति १६. बंधनबधानं मुनिसानं तीलितदंडानं पतवधानं तिनि दिवसानि मे दया दाने सोचये (३) चखुदाने पि मे बहुविधे दिने (४) दुपद- १७. योते दिने (१२) नातिका व कानि निझपयिसंति जीविताये तानं चतुपदेस पखिवालिचलेस विविधे मे अनुगहे कटे आ पान- १८. नासंतं वा निझपयिता वा नं दाहंति पालतिकं उपवासं व दाखिनाये (५) अंनानि पि च मे बहूनि कयानानि कटानि (६) कछंति (१३) १९. इछा हि मे हेवं निलुधसि पि कालसि पालतं आलाधयेवू ति अठाये इयं धमलिपि लिखापिता हेवं अनुपटिपजंतु चिलं (१४) जनस च थितिका च होतू तीति (७) ये च हेवं संपटिपजीसति से सुकटं २०. वढ़ति विविधे धंमचलने संयमे दानसविभागे ति (१५) कछती ति। पंचम अभिलेख (दक्षिणाभिमुख) तृतीय अभिलेख (उत्तराभिमुख) (जीवों को अभयदान) (आत्मनिरीक्षण) १. देवानंपिये पियदसि लाज हेवं अहा (१) सडुवीसतिवसदेवानंपिये पियदसि लाज हेवं अहा (१) कयानं मेव देखति २. अभिसितेन मे इमानि जातानि अवधियानि कटानि सेयथा इयं मे सुके सालिका अलुने चकवाके हंसे नंदीमुखे गेलाटे कयाने कटे ति (२) नो मिन पापं देखति इयं मे पापे कटे ति जतूका अंबाकपीलिका दली अनठिकमछे वेदवेयके इयं वा आसिनवे गंगा पुपुटके संकुजमछे कफटसयके पंनससे सिमले ३. नामाति (३) दुपटिवेखे चु खो एसा (४) हेवं चु खो एस देखिये ६. संडके ओकपिंडे पलसते सेतकपोते गामकपोते (५) इमानि सवे चतुपदे ये पटिभागं नो एति न च खादियती (२) आसिनवगामीनि नाम अथ चंडिये निठलिये कोधे माने इस्या ८. एलका चा सकूली चा गभिनी वा पायमीना व अवधिय प तके कालनेन व हकं मा पलिभसयिसं (६) एस बाढ देखिये (७) ९. पि च कानि आसंमासिके (३) वधिककटे नो कटविये (४) इयं मे तुसे सजीवे हिदतिकाये इयमन मे पालतिकाये १०. नो झापेतविये (५) दावे अनठाये वा विहिसाये वा नो चतुर्थ अभिलेख (पश्चिमाभिमुख) झापेतविये (६) (राजुकों के अधिकार और कर्तव्य) ११. जीवेन जीवे नो पुसितविये (७) तीसु चातुंमासीसु तिसायं देवानंपिये पियदसि लाज हेवं आहा (१) सडुवीसतिवस पुनमासियं २. अभिसितेन मे इयं धमलिपि लिखापिता (२) लजूका मे १२. तिंनि दिवसानि चावुदसं पंनडसं पटिपदाये धुवाये चा बहूसु पानसतसहसेसु जनसि आयता (३) तेसं ये अभिहाले वा १३. अनुपोसथं मछे अवधिये नो पि विकेतविये (८) एतानि येवा दंडे वा अतपतिये मे कटे किंति लजूका अस्वथ अभीता दिवसानि ५. कंमानि पवेयेवू जनस जानपदसा हितसुखं उपदहेवू १४. नागवनसि केवटभोगसि यानि अंनानि पि जीवनिकायानि ६. अनुगहिनेवु च (४) सुखीयनं दुखीयनं जानिसंति धंमयुतेन च १५. न हंतवियानि (९) अठमीपखाये चावुदसाये पंनडसाये तिसाये वियोवदिसंति जनं जानपदं किंति हिदतं च पालतं च १६. पुनावसुने तीसु चातुंमासीसु सुदिवसाये गोने नो नीलखितविये आलाधयेवू ति (५) लजूका पि लघंति पटिचलितवे १७. अजके एडके सूकले ए वा पि अंने नीलखियति नो (६) पुलिसानि पि मे नीलखितविये (१०) छंदनानि पटिचलिसंति (७) ते पि च कानि वियोवदिसंति १८. तिसाये पुनावसुने चातुंमासिये चातुंमासि पखाये अस्वसा गोनसा येन मं लजूका १९. लखने नो कटविये (११) यावसडुवीसतिवस अभिसितेन मे चघंति आलाधयितवे (८) अथा हि पज वियताये धातिये निसिजितु २०. अंतलिकाये पंनवीसति बंधनमोखानि कटानि (१२) अस्वथे होति वियत धाति चघति मे पजं सुखं पलिहटवे षष्ठ अभिलेख (अपूर्वाभिमुख) १२. हेवं ममा लजूका कटा जानपदस हितसुखाये (९) येन एते अभीता (धर्मवृद्धि : धर्म के प्रति अनुराग) १३. अस्वथ संतं अविमना कंमानि पवतयेवू ति एतेन मे लजूकानं देवानंपये पियदसि लाज हेवं अहा (१) दुवाडस १४. अभिहाले व दंडे वा अतपतिये कटे (१०) इछितविये हि २. वस अभिसितेन मे धमलिटि लिखापिता लोकसा एसा किंति हितसुखाये से तं अपहटा तं तं धंमवढि पापो वा (?) १५. वियोहालसमता च सिय दंडसमता चा (११) अव इते पि च ४. हेवं लोकसा हितसुखेति पटिवेखामि अथ इयं CM G एताये सात ११. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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