Book Title: Sagarmal Jain Abhinandan Granth
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 785
________________ ६५३ जैन विद्या के आयाम खण्ड ६ und die politische Entwicklung Magadhas Zu Jerier Zeit ३९. धवला टीका समन्वित षट्खण्डागम, खण्ड-४, पुस्तक- ९ 557. १७. Charpentier Jarl Uttaradhyayanasutra, Introduction p.13.16. १८. अनेकान्त, वर्ष ४ किरण १०, शास्त्री ए शान्तिराज-- भगवान महावीर के निर्वाण सम्वत् की समालोचना १९. Indian Antiquary, Vol. XLVI, 1917, July 1917, Page 151 152, Swati Publications, Delhi, 1985. २०. The Journal of the royal Asiatic Society, 1917, Vankteshvara, S.V.-- The Date of Vardhamana, p. 122 - 130. २१. मुख्तार जुगलकिशोर "जैनसाहित्य और इतिहास पर विशद ४२ - प्रकाश", श्री वीरशासन पृ० २६-५६ ४३. -- ४४ २२. मुनि कल्याणविजय वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना प्रकाशक क०वि० शास्त्र समिति जालौर, वि०स० १९८७ २३. Eggermont, P. H.L. -- "The Year of Mahavira's Decease". २४. Smith, V.A. - The Jaina Stupa nad other Antiquities of Mathura, Indological Book House, Delhi, 1969, p. 14. 34. Norman, K.R.--Observations on the Dates of the Jina and the Buddh. २६. दीघनिकाय, सामफलमुतं २/१/७ २७. मुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण संवत् और जैनकालगणना, पृ०४-५ २८. मुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण और जैनकालगणना, पृ० १ २९. दीघनिकाय, सामञ्ञफलसुत्तं, २/२/८ ३०. दीघनिकाय, पासादिकसुतं ६/१/१ -- ३५. विविधगच्छीय पट्टावलीसंग्रह (प्रथम भाग ) जिनविजय जी ३६. वीरनिर्वाण सम्वत् और जैन काल गणना मुनि कल्याणविजय, पृ०१७८ ३७. परिशिष्ट पर्व हेमचन्द्र, ८/३३९ , ३८. (अ) पट्टावलीपरागसंग्रह मुनि कल्याणविजयजी पृ०१३२,१३३ ४०. (अ) मुनि कल्याणविजय पट्टावलीपरागसंग्रह, पृ० ५२ मुनिजी द्वारा किये गये अन्य परिवर्तनों के लिये देखें पृ० ४९ (ब) विविधगच्छीय पट्टावली संग्रह प्रथमभाग सम्पादक-जिनविजय, सिंघी जैन शास्त्र शिक्षा पीड़, भारतीय विद्याभवन, बम्बई, प्रथम भाग पृष्ठ १७ Jain Education International ४१. ४५. ४६. ४७. ३९. वही, ५१. जैन शिलालेखसंग्रह, भाग २, लेखक्रमांक ४१, ६७ ३२. मुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण संवत् और जैनकालगणना पृ०५ ५२. मुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण संवत् और जैनकालगणना, ३३. (अ) Majumbar, R. C. Ancient India, p. 108 जालौर, पृ० १०६ टिप्पणी (ब) डॉ० रमाशंकर त्रिपाठी प्राचीन भारत का इतिहास पृ० १३९ ३४. तित्योगाली पइन्नयं, ७८ (पइण्णय सुत्ताई, महावीर विद्यालय, ५३. V.A Smith. The Jian Stupa and other Antiquities of Matura, p. 24 बम्बई) ५४. कल्पसूत्र स्थविरावली (अन्तिम गाथा भाग) गाया १ ५५. विशेषावश्यकभाष्य ५६. जैनशिलालेखसंग्रह, भाग २, लेख क्रमांक ५६, ५९ ५७. मुनि जिनविजय, विविधगच्छीय पट्टावली संग्रह, प्रथम भाग, ४८. ४९. ५० (ब) मुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण, संवत् और जैन कालगणना, पृ० १३७ ज्ञातव्य है कि मुनिजी द्वारा एक ओर सम्भूति विजय के काल को आठ वर्ष से साठ वर्ष करना और दूसरी ओर मौर्यों के इतिहास सम्मत १०८ वर्ष के काल को एक सौ साठ वर्ष करना केवल अपनी मान्यता की पुष्टि का प्रयास है। तित्वोगालीपइत्रयं पइण्ण सुत्ताई। ७९३, ७९४ डॉ० रामशंकर त्रिपाठी प्राचीन भारत का इतिहास, पृ० १३९। (अ) जैनशिलालेख संग्रह, भाग २ क्रमांक ४१. ५४,५५,५६,५९,६३२ (ब) आर्यकृष्ण (कण्ह) के लिये देखें- V. A. Smith-Thejain Stupa and other Antiquities of Mathura, P.24 नन्दीसूत्र रथविरावली, २७, २८, २९ कल्पसूत्र स्थविरावली (अन्तिम गाथ भाग) गाथा १ एवं ४ मुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण संवत् और जैन काल गणना, जालौर, पृ० १२२, आधार- युगप्रधान पट्टावलियाँ। जैन शिलालेख संग्रह, भाग २, लेख क्रमांक ५४ मुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना, जालौर, पृ० १२१ एवं १३१ ५०. नन्दीसूत्र स्थाविरावली, २७, २८ एवं २९ पृ०१७ ५८. कल्पसूत्र (सं माणिकमुनि, अजमेर) १४७ ५९. गुजरात नो राजकीय अने सांस्कृतिक इतिहास ग्रन्थ ३, बी० जे० इन्स्टीट्यूट, अहमदाबाद-९, पृ० ४० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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