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श्रावक आचार की प्रासङ्गिकता का प्रश्न श्रावक-आचार के विधि-निषेधों में युगानुकूल जो छोटे-मोटे परिवर्तन जमीकन्द-खाना चाहिए या नहीं खाना चाहिए, ऐसे छोटे-छोटे प्रश्न अपेक्षित हैं, उन पर विचार किया जा सकता है और युगानुकूल श्रावक उठा लिये जाते हैं, किन्तु श्रावक-आचार की मूलभूत दृष्टि क्या हो? धर्म की आचार-विधि आगमिक नियमों को यथावत् रखते हुए बनायी और उसके लिए युगानुकूल सर्वसामान्य आचार-विधि क्या हो? इस जा सकती है। आज हमारा दुर्भाग्य यही है कि हम जैन मुनि के बात पर हमारी कोई दृष्टि नहीं जाती। यह एक शुभ संकेत है कि आचार-नियमों पर तो अभी भी गम्भीर चर्चाएँ करते है, किन्तु श्रावक अरिवल भारती जैन विद्वत् परिषद् ने इस प्रश्न को लेकर एक धर्म की आचार-विधि पर कोई गम्भीरतापूर्वक विचार नहीं किया जाता। विचार-गोष्ठी आयोजित की। यद्यपि यह एक प्रारम्भिक बिन्दु है किन्तु आज यह मान लिया गया है कि आचार सम्बन्धी विधि-निषेध मुनियों मुझे विश्वास है कि यह प्राथमिक प्रयास भी कभी बृहद् रूप लेगा और के सन्दर्भ में ही हैं। गृहस्थों की आचार-विधि ऐसी है या ऐसी होनी हम अपने श्रावक वर्ग को एक युगानुकूल आचारविधि दे पाने में चाहिए, इस बात पर हमारा कोई ध्यान नहीं जाता। यद्यपि कभी-कभी सफल होंगे।
PAPrimVARAHIYHain
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