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जैन विद्या के आयाम खण्ड-६ ने बन्धन के कारण पर विचार किया तो अविद्या, तृष्णा आदि में से बल नहीं दिया, अपितु मिथ्यात्व, कषाय, अविरति, प्रमाद और योग किसी एक को कारण नहीं माना, वरन् उनकी प्रतीत्यसमुत्पाद के रूप के पंचक को स्वीकार किया। यह सम्भव है कि किसी एक दृष्टि विशेष में शृङ्खला खड़ी कर दी। जैन विचारकों ने जब आस्रव के कारण से विचार करते समय एक पक्ष को प्रमुखता दी गई हो, लेकिन दूसरे पर विचार किया तो केवल मिथ्यात्व या कषाय में से किसी एक पर पक्षों को झुठलाया नहीं गया है।
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सन्दर्भ :
(अभिसंधि) thought it leads to unhappiness to others. It १. नीतिशास्त्र की रूपरेखा, डॉ० रामनाथ शर्मा, मेरठ, पृ० ७५। considers an action to be wrong if it is actuated by bad नीतिशास्त्र की रूपरेखा, पृ० ७५।
intention though it leads to happiness of others. नीतिशास्त्र की रूपरेखा, पृ० ७६।
-- History of Indian philosophy. ४. मज्झिमनिकाय, सुत्त ५६।
१६. Hence right and wrong are to be determined not by सूत्रकृताङ्ग, २/६/२६-२७।
objective consequences but by the nature of the subjective ६. मा फलेषु कदाचन, मा कर्मफलहेतुर्भूः - गीता, २/४७।
intention of the agent. ७. कृपणा: फलहेतवः- गीता २/४९।
-- The Ethics of the Hindus P. 289. गीता रहस्य, बालगंगाधर तिलक, पृ० ४८१।
१७. युक्ताचरणस्य सतो रागद्याबशमन्तरेणाऽपि । सङ्कल्पमूला हि सर्वेकामाः। - गीता शाङ्करभाष्य, गीताप्रेस
नहि भवति जातु हिंसा प्राणव्यपरोपणादेव ।। गोरखपुर, ६/४।
-पुरुषार्थसिद्धयुपाय (अमृतचन्द्र), ४५। १०. कामं जानामि ते मूलं सङ्कल्पान्त्वं हि जायसे।
१८. मातरं पितरं हन्त्वा राजानो द्वे च खत्तिये । न त्वां सङ्कल्पयिष्यामि तेन मे न भविष्यसि।।
र8 सानुचरं हन्त्वा अनिघो याति ब्राह्मणो ।। -धम्मपद, २९४ । - महाभारत, शान्तिपर्व, गीताप्रेस. १७७/२५। १९. यस्य नाहकृता भावा बुाद्धयस्य न लिप्यत।। ११. गीता रहस्य, ३/२४ की टीका।
हत्वापि स इमाल्लोकान हन्ति न निबध्यते ।। - गीता, १८/१७। १२. अज्झवसिदेण बंधो सत्ते मारेउ मा वा मारेउ। – समयसार २६२। २०. सूत्रकृताङ्ग, २/६/३२! १३. ण य वत्थुदो दु बंधो अज्झवसाणेण बंधोत्थि।-समयसार २६५।।
२१. मनस्यैकं वचस्यैकं कर्मण्येकं महात्मनाम्। १४. (अ) एस० के मैत्रा–दि ऐथिक्स ऑफ दि हिन्दूज, पृ०
२२. The Jain Ethics stresses subjective morality though it
२ ३२१-३२३।
gives due consideration to the consequences of actions. (ब) जे०एन०सिन्हा-इन्डियन फिलासफी, जैन फिलासफी।
--History of Indian Philosophy.
२३. टिप्पणी- जैन दर्शन में जिस प्रकार योग मानसिक और शारीरिक १५. The Jain Ethics emphasises purity of motives as
कृत्यता है उसी प्रकार मिल के अनुसार अभिप्राय भी कृत्यता है। अत: distinguished from consequences of action. It considers
दोनों ही समान माने जा सकते हैं। an action to be right if it is actuated by good intention
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