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नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन
जिस प्रकार वेदों के शब्दों की व्याख्या के रूप में सर्वप्रथम निरुक्त सा अर्थ किस प्रसंग में उपयुक्त है, यह निर्णय करना आवश्यक होता लिखे गये, सम्भवतः उसी प्रकार जैन परम्परा में आगमों की व्याख्या है। भगवान् महावीर के उपदेश के आधार पर लिखित आगमिक ग्रन्थों के लिए सर्वप्रथम नियुक्तियाँ लिखने का कार्य हुआ। जैन आगमों की में कौन से शब्द का क्या अर्थ है, इसे स्पष्ट करना ही नियुक्ति का व्याख्या के रूप में लिखे गये ग्रन्थों में नियुक्तियाँ प्राचीनतम हैं। आगमिक प्रयोजन है।" दूसरे शब्दों में नियुक्ति जैन परम्परा के पारिभाषिक शब्दों व्याख्या साहित्य मुख्य रूप से निम पाँच रूप में विभक्त किया जा का स्पष्टीकरण है। यहाँ हमें स्मरण रहे कि जैन परम्परा में अनेक सकता है-१. नियुक्ति २. भाष्य ३. चूर्णि ४. संस्कृत वृत्तियाँ एवं शब्द अपने व्युत्पत्तिपरक अर्थ में गृहीत न होकर अपने पारिभाषिक टीकाएँ और ५. टब्बा अर्थात् आगमिक शब्दों को स्पष्ट करने के लिए अर्थ में गृहीत हैं, जैसे-अस्तिकायों के प्रसंग में 'धर्म' एवं 'अधर्म' प्राचीन मरु-गुर्जर में लिखा गया आगमों का शब्दार्थ। इनके अतिरिक्त शब्द, कर्म सिद्धान्त के सन्दर्भ में प्रयुक्त 'कर्म' शब्द अथवा स्याद्वाद सम्प्रति आधुनिक भाषाओं यथा हिन्दी, गुजराती एवं अंग्रेजी में भी में प्रयुक्त 'स्यात्' शब्द। आचारांग में 'दंसण' (दर्शन) शब्द का जो आगमों पर व्याख्याएँ लिखी जा रही हैं।
अर्थ है, उत्तराध्ययन में उसका वही अर्थ नहीं है। दर्शनावरण में दर्शन सुप्रसिद्ध जर्मन विद्वान् शान्टियर उत्तराध्ययनसूत्र की भूमिका शब्द का जो अर्थ होता है वही अर्थ दर्शनमोह के सन्दर्भ में नहीं होता में नियुक्ति की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं कि 'नियुक्तियाँ है। अत: आगम ग्रन्थों में शब्द के प्रसंगानुसार अर्थ का निर्धारण करने मुख्य रूप से केवल विषयसूची का काम करती हैं। वे सभी विस्तारयुक्त में नियुक्तियों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। घटनाओं को संक्षेप में उल्लिखित करती हैं।'
नियुक्तियों की व्याख्या-शैली का आधार मुख्य रूप से जैन परम्परा अनुयोगद्वारसूत्र में नियुक्तियों के तीन विभाग किये गये हैं- में प्रचलित निक्षेप-पद्धति रही है। जैन परम्परा में वाक्य के अर्थ का
१. निक्षेप नियुक्ति- इसमें निक्षेपों के आधार पर पारिभाषिक निश्चय नयों के आधार पर एवं शब्द के अर्थ का निश्चय निक्षेपों के शब्दों का अर्थ स्पष्ट किया जाता है।
आधार पर होता है। निक्षेप चार हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। २. उपोद्घात नियुक्ति- इसमें आगम में वर्णित विषय का इन चार निक्षेपों के आधार पर एक ही शब्द के चार भिन्न अर्थ हो पूर्वभूमिका के रूप में स्पष्टीकरण किया जाता है।
सकते हैं। निक्षेप-पद्धति में शब्द के सम्भावित विविध अर्थों का उल्लेख ३. सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति- इसमें आगम की विषय-वस्तु का कर उनमें से अप्रस्तुत अर्थ का निषेध करके प्रस्तुत अर्थ का ग्रहण उल्लेख किया जाता है।
किया जाता है। उदाहरण के रूप में आवश्यकनियुक्ति के प्रारम्भ में प्रो. घाटगे ने इण्डियन हिस्टारिकल क्वार्टरली, खण्ड १२, अभिनिबोध ज्ञान के चार भेदों के उल्लेख के पश्चात् उनके अर्थों को पृ० २७० में नियुक्तियों को निम्न तीन विभागों में विभक्त किया है- स्पष्ट करते हुये कहा गया है कि अर्थों (पदार्थों) का ग्रहण अवग्रह
१. शुद्ध नियुक्तियाँ- जिनमें काल के प्रभाव से कुछ भी मिश्रण है एवं उनके सम्बन्ध में चिन्तन ईहा है। इसी प्रकार नियुक्तियों में न हुआ हो, जैसे आचारांग और सूत्रकृतांग की नियुक्तियाँ। किसी एक शब्द के पर्यायवाची अन्य शब्दों का भी संकलन किया
२. मिश्रित किन्तु व्यवच्छेद्य नियुक्तियाँ- जिनमें मूलभाष्यों का गया है, जैसे- आभिनिबोधिक शब्द के पर्याय हैं- ईहा, अपोह, संमिश्रण हो गया है, तथापि वे व्यवच्छेद्य हैं, जैसे दशवैकालिक और विमर्श, मार्गणा, गवेषणा, संज्ञा, स्मृति, मति एवं प्रज्ञा। नियुक्तियों आवश्यकसूत्र की नियुक्तियाँ।
की विशेषता यह है कि जहाँ एक ओर वे आगमों के महत्त्वपूर्ण पारिभाषिक ३. भाष्य मिश्रित-नियुक्तियाँ-वे नियुक्तियाँ जो आजकल भाष्य शब्दों के अर्थों को स्पष्ट करती हैं, वहीं आगमों के विभिन्न अध्ययनों या बृहद्भाष्य में ही समाहित हो गयी हैं और उन दोनों को पृथक्- और उद्देशकों का संक्षिप्त विवरण भी देती हैं। यद्यपि इस प्रकार की पृथक् करना कठिन है जैसे निशीथ आदि की नियुक्तियाँ। प्रवृत्ति सभी नियुक्तियों में नहीं है, फिर भी उनमें आगमों के पारिभाषिक
नियुक्तियाँ वस्तुत: आगमिक परिभाषिक शब्दों एवं आगमिक शब्दों के अर्थ का तथा उनकी विषय-वस्तु का अति संक्षिप्त परिचय विषयों के अर्थ को सुनिश्चित करने का एक प्रयत्न हैं। फिर भी नियुक्तियाँ प्राप्त हो जाता है। अति संक्षिप्त हैं, इनमें मात्र आगमिक शब्दों एवं विषयों के अर्थ-संकेत ही हैं, जिन्हें भाष्य और टीकाओं के माध्यम से ही सम्यक प्रकार से प्रमुख नियुक्तियाँ समझा जा सकता है। जैन आगमों की व्याख्या के रूप में जिन नियुक्तियों आवश्यकनियुक्ति में लेखक ने जिन दस नियुक्तियों के लिखने का प्रणयन हुआ, वे मुख्यत: प्राकृत गाथाओं में हैं। आवश्यकनियुक्ति की प्रतिज्ञा की थी, वे निम्न हैंमें नियुक्ति शब्द का अर्थ और नियुक्तियों के लिखने का प्रयोजन बताते १. आवश्यकनियुक्ति हुए कहा गया है-“एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, अत: कौन २. दशवैकालिकनियुक्ति
प्रवृत्ति सम
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