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विवरण जुड़े जिनकी सूचना उसके स्थानांग के विवरण से मिलती है। इसके पश्चात् ईसा की चौथी शताब्दी में ऋषिभाषित आदि भाग अलग किये गये और उसे निमित्तशास्त्र का प्रन्थ बना दिया, समवायांग का विवरण इसका साक्षी है। इस काल में प्रश्नव्याकरण के नाम से वाचनाभेद से अनेक ग्रन्थ अस्तित्व में थे ऐसी भी सूचना हमें आगम साहित्य से मिल जाती है। लगभग ईसा की ६ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इन ग्रन्थों के स्थान पर वर्तमान प्रश्नव्याकरण सूत्र का आश्रव एवं संवर के विवेचन से युक्त यह संस्करण अस्तित्व में आया है जो वर्तमान में हमें उपलब्ध है। यह प्रश्नव्याकरण का अन्तिम संस्करण जहां
सन्दर्भ
१. पण्हावागरणेसु अद्भुत्तरं पसिणसयं अदुत्तरं अपसिणसयं अनुत्तरं पसिणापसिणसयं विज्जाइसया नाग-सुवन्नेहिं सद्धिं दिव्व संवाया आघविज्र्ज्जति । समवायांगसूत्र, ५४६ ।
२. वागरणगंथाओ पभिति
। इसिभासियाइं- ३१ ।
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प्रश्नव्याकरणसूत्र की प्राचीन विषयवस्तु की खोज
पण्हावागरणदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा उवमा, संख, इसिभासियाई, आयरियभासियाई, महावीरभासियाई, खोमगपसिणई, कोमलपसिणा, अंधारापसिणा, अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिगाई स्थानांगसूत्र, १० / ११६
से किं तं पण्हावागरणाणि? पण्हावागरणेसु अद्भुत्तरं पसिणसयं अट्टुत्तरं अपसिणस, अट्टुत्तरं सिणापसिणसयं विज्जाइसया नाग-सुवन्नेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जंति । पण्हावागरणदसासु णं ससमय परसमय पण्णवय- पत्ते अबुद्धविवित्थभासा- भासियाणं अइसयगुण उवसम-णाणप्पगारआयरियभासियाणं वित्थरेणं, वीरमहेसीहिं विविहवित्थरभासियाणं च जगहियाणं अद्दागंगुट्ठ - बाहु-असि मणि-खोम- आइच्चभासियाणं विविमहापसिणविज्जा-मणपसिणविज्जा देवयपयोग पहाण गुणप्पसियाणी सब्भूयद्गुणप्पभाव- नरगणमइविम्हयकराणं अइसयमईयकालसमयदम-सम- तित्थकरुत्तमस्स ठिइकरणकारणाणं दुरहिगम-दुरवगाहस्स सव्वसव्वन्नुसम्म अस्स अबुह-जण-विबोहणकरस्स पच्चक्खयपच्चयकराणं पहाणं विविगुणमहत्था जिणवरप्पणीया आघविज्जति । पन्हाचागरणेसु णं परिता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुतीओ, संखेज्जाओ संग्रहणीओ।
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सेणं अंगडयाए दसमे अंगे एगे सुयवखंधे, पणयालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाणि पयसयसहस्साणि पयग्गेणं पण्णत्ताई। संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जति परुविज्जेति निसिखति उपदेसिज्जति। से एवं आया, से एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करणपरूवणया आधविज्जति से तं पण्हावागरणाई १० ।
समवायांगसूत्र, ५४६-५४९ । से किं तं पण्हावागरणाई ? पण्हावागरणेसु णं-अङ्गुत्तरं पसिणस, अट्टुत्तरं अपसिणसयं, अट्टुत्तर पसिणापणिसयं, तंजहा अंगुट्ठपसिणाई,
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तक प्रश्नव्याकरण के उपर्युक्त दो प्राचीन लुप्त संस्करणों की विषयवस्तु का प्रश्न है, उसमें से प्रथम संस्करण की विषयवस्तु अधिकांश रूप से एवं कुछ परिवर्तनों के साथ वर्तमान में उपलब्ध ऋषिभाषित (इसिभासियाई), उत्तराध्ययन सूत्रकृतांग एवं ज्ञाताधर्मकथा में समाहित है। द्वितीय निमित्तशास्त्र सम्बन्धी संस्करण की विषयवस्तु, जयपायड और प्रश्नव्याकरण के नाम से उपलब्ध अन्य निमित्तशास्त्रों के ग्रन्थों में हो सकती है। यद्यपि इस सम्बन्ध में विशेषरूप से शोध की आवश्यकता है। आशा है विद्वद्जन इस दिशा में ध्यान देंगे।
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बाहुपसिणाई अद्दागपसिणाई, अन्नेवि विचित्ता विज्जाइसया, नाग- सुवण्णेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जन्ति ।
पावागरणाणं परिता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ, संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
सेणं अंगट्टयाए दसमे अंगे, एगे सुयक्खंघे, पणयालीसं अज्झयणा, पणयालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाई परसहस्साइं पयग्वेणं, संखेज्जा अवखरा, अणता गमा, अनंता पज्जवा, परिता तसा अणन्ता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जन्ति, पण्णविज्जन्ति परूविज्जन्ति, देसिज्जन्ति निर्देसिज्जन्ति उवदंसिज्जन्ति ।
से एवं आया, एवं नाया एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आविज्जई स तं पण्हावागरणाई। - नन्दीसूत्र, ५४ ॥ आक्षेपविक्षेपैर्हेतुनयाश्रितानां प्रश्नानां व्याकरणं प्रश्नव्याकरणम्, तस्मिल्लौकिकवैदिकानामर्थानां निर्णयः । तत्त्वार्थवार्तिक १/२०
( पृ० ७३-७४) । अक्खेवणी विक्खेवणी संवेयणी णिव्वेयणी चेदि चडव्विहाओ कहाओ वण्णेदि तत्व अक्खेवणी नाम छद्दव्व णव पयत्वाणं सरूवं दिगंतरसमयांतर - निराकरणं मुद्धिं करेंती परूवेदि । विक्खेवणी णाम परसमएण ससमयं दूसंती पच्छा दिगंतरसुद्धिं करती ससमयं थावंती छद्दव्वा णवपयत्थे परूवेदि ।
संवेयणी णाम पुण्णफलसंकहा। काणि पुण्णफलाणि? तित्वयरगणहर-रिसि चक्कवडि बलदेव सुर- विज्जाहररिद्धीओ।
णिव्वेयणी णाम पावफलसंकहा। काणि पावफलाणि? णिरय-तिरियकुमाणुसजोणीसु जाइ जरा मरण वाहि वेयणा दालिदादीणि संसारसरीरभोगे वेरग्गुष्पाहणी णिब्वेयणीणा.........| पहाओ हद-न-मुट्ठ-चिंता-लाहालाह- सुह- दुक्ख जीविय मरणजय-पराजय-णाम- दव्वासु संखं च परूवेदि ।
-धवला, पुस्तक १, भाग १, पृ० १०७-८1 वागरणगंथाओं पभिति जाव सामित्तं इमं अज्झयणं ताव इमो बीओ पाढो दिस्सति, तंजा
इसिभासियाई, अध्याय ३१ ।
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