________________
[ xxxii ]
लक्ष्मणभट्ट पितामह थे जो काशी में ही निवास करते थे। आचार्य दिवाकर ने इन्हें नाट्यशास्त्र की शिक्षा दिया था। आचार्य दिवाकर नाट्यशास्त्र के पूर्ण पण्डित थे जिनके एक ग्रन्थ का उल्लेख पूर्णसरस्वतीकृत मेघदूत की व्याख्या में हुआ है। शारदातनय ने भाव-प्रकाशन में कोहल, मातृगुप्त, हर्ष, सुबन्धु, आदि अनेक पूर्ववर्ती आचार्यों के साथसाथ आनन्दवर्धन, रुद्रट, धनञ्जय, अभिनवगुप्त, धनिक, भोज एवं मम्मट के सिद्धान्तो का उल्लेख करते हुए उनकी समीक्षा किया है। भावप्रकाशन दस अधिकारों में विभक्त ग्रन्थ है जिनमें भाव, रस, रसभेद, नायक-नायिका, विवेचन हुआ है। इनका समय तेरहवी शताब्दी माना जाता है ।
7. रसार्णव सुधाकर - इसके कर्त्ता शिङ्गभूपाल हैं जिनका विस्तृत विवेचन भूमिका में आगे किया जाएगा।
8. नाटकचन्द्रिका - इसके कर्त्ता रूपगोस्वामी शिङ्गभूपाल से परवर्ती आचार्य हैं। इनका समय सोलहवीं शताब्दी माना जाता है । इन्होंने अपने ग्रन्थ में स्वयं लिखा है कि मैं भरत के नाट्यशास्त्र और शिङ्गभूपाल के रसार्णवसुधाकर का अध्ययन करके इस ग्रन्थ का प्रणयन कर रहा हूँ। रूपगोस्वामी चैतन्यसम्प्रदाय के कृष्ण भक्त थे। इन्होंनें नाट्यविषयक लक्षणों को प्रस्तुत करके कुछ लक्षणों के उदाहरणों के रूप में स्वरचित पद्यों को उद्धृत् किया है जो कृष्ण और राधा के वर्णनों से युक्त हैं ।
अन्य काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में नाट्यविषयक विवेचन- उपर्युक्त ग्रन्थे के अतिरिक्त कुछ अन्य काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में नाट्यविषयक तथ्य उपलब्ध होते हैं। इनमे से भोजराज (11 शती) के शृङ्गारप्रकाश और सरस्वतीकण्ठाभरण - दो ऐसे ग्रन्थ है जिनमें नाट्यशास्त्रीय कुछ विवेचन प्राप्त होते हैं। शृङ्गारप्रकाश के 11 तथा 36 प्रकार में रसविचार और 12 तथा 31 प्रकाश में क्रमशः रूपकों और नायक-नायिका का विवेचन हुआ है। इस प्रकार सरस्वतीकण्ठाभरण के पाँचवें परिच्छेद में रस, भाव, नायक-नायिक भेद, सन्धियों और वृत्तियों का निरूपण हुआ है। इसी प्रकार हेमचन्द्र सूरि (बारहव शताब्दी) के काव्यानुशासन के द्वितीय अध्याय में रस और भाव, सप्तम अध्याय में नायकनायिका भेद तथा अष्टम अध्याय में दृश्य और श्रव्य काव्य का निरूपण हुआ है। विद्यानाथ (चौदहवीं शताब्दी) के प्रतापरुद्रयशोभूषण नामक ग्रन्थ के प्रथम प्रकरण में नायक, तृतीय प्रकरण में नाट्य और चतुर्थ प्रकरण में रस का विवेचन हुआ है। विश्वनाथ कविराज् (चौदहवीं शताब्दी) के साहित्यदर्पण तृतीय परिच्छेद में नायक-नायिका तथा षष्ठ परिच्छे में रस का प्रतिपादन हुआ है।