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महासाध्यपाल थे। ये उत्पलराज महाराज मुञ्ज ही थे। धनिक ने नवसाहसाङ्कचरित का श्लोक दशरूपक की 2.40 टीका में उद्धृत किया है जिसकी रचना सिन्धुराज के समय में हुई थी। सिन्धुराज ने महाराज मुञ्ज के बाद शासन-भार को सभाला। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि धनिक अपने बड़े भाई धनञ्जय के साथ मुञ्ज की सभा में थे। तदनन्तर सिन्धुराज के शासनकाल में अवलोक टीका का प्रणयन किया। अवलोक के अतिरिक्त धनिक ने 'काव्यनिर्णय' नामक ग्रन्थ लिखा था जिसकी सात कारिकाओं को अपने मत की पुष्टि में अवलोक टीका में उदधृत किया है। अवलोक में धनिक ने कुछ स्वरचित श्लोकों को भी उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया है जिससे उनकी कवित्व प्रतिभा भी धोतित होती है। अवलोक की शैली अतिसरल है।
4. नाटकलक्षणरत्नकोश- यह ग्रन्थ सागरनन्दी द्वारा विरचित है। इस ग्रन्थ में रूपक, पञ्च अवस्थाओं, भाषा के प्रकार, अर्थप्रकृतियों, अङ्क, पञ्चसन्धियों, पताकास्थानक, वृत्ति, अलङ्कार, रस, भाव, नायक-नायिका-भेद तथा उनके गुण इत्यादि का विस्तृत विवेचन हुआ है। सागरनन्दी ने अनेक ग्रन्थों का अनुशीलन करके इस ग्रन्थ की रचना किया है और ग्रन्थ के अन्त में उनमें से अनेक आचार्यों के प्रति श्रद्धा व्यक्त किया है। इसके दो संस्करण प्रकाशित हुए है- 1. प्रो. एम. डिल्लन द्वारा 1937 में लन्दन से तथा 2. चौखम्बा संस्कृत सिरीज से हिन्दी अनुवाद के साथ। इसका विषय-विवेचन दशरूपक के अनुसार किन्तु अव्यवस्थित है। कहीं-कहीं तो भरत के नाट्यशास्त्र की सामग्री को ज्यों का त्यों रख दिया गया है।
___5. नाट्यदर्पण- इसके कर्ता रामचन्द्र-गुणचन्द्र हैं। ये दोनों सुप्रसिद्ध जैन आचार्य हेमचन्द्र के शिष्य थे। नाट्यदर्पणसूत्र इन दोनों की सम्मिलित रचना है। यह ग्रन्थ चार विवेकों में विभक्त है जिनमें नाट्यविषयक दश-रूपकों, रस, भाव, अभिनय, तथा रूपक-सम्बन्धी विभिन्न तत्त्वों का विवेचन हुआ है। अनुमान है कि यह ग्रन्थ दशरूपक की प्रतिद्वन्दिता में लिखा गया। इसकी वृत्ति भी रामचन्द्र-गुणचन्द्र ने ही लिखा है। इसमें प्राचीन भरत, कोहल, धनञ्जय आदि नाट्याचार्यों के मतों की समालोचना की गयी है। रामचन्द्र व्याकरण, नाट्यशास्त्र और साहित्य- शास्त्र के मूर्धन्य पण्डित थे। गुणचन्द्र का विशेष उल्लेख नहीं है। रामचन्द्र को प्रबन्धशतकार (सौ ग्रन्थों के रचयिता) के रूप में जाना जाता है। हेमचन्द्र का समय बारहवीं शताब्दी है अतः इन दोनों को भी बारहवीं शताब्दी में होना चाहिए।
6. भावप्रकाशन- इसके कर्ता शारदातनय हैं। ये अपने को शारदा के वरदपुत्र मानते थे अतः इनका नाम शारदातनय पड़ा। गोपालभट्ट इनके पिता तथा