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बसाया और जीविकोपार्जन हेतु विस्तृत भूसम्पत्ति भी प्रदान किया।
इसी वंश में पैदा हुए इनके पितामह वराहगुप्त के पुत्र नृसिंहगुप्त जो चुलुरवक नाम से पुकारे जाते थे, अभिनवगुप्त के पिता थे। इनके पिता ही नहीं सम्पूर्ण वंश ही विद्वदग्रगण्य था। इनकी माँ बाल्यावस्था में द्विवङ्गत हो गयीं। माँ के अभाव में अभिनवगुप्त का जीवन वात्सल्यपूर्ण प्यार से रहित, शुष्क, नीरस, और वेदनापूर्ण हो गया। पत्नी के वियोग में इनके पिताजी कुछ दिनों के बाद विरक्त होकर वैराग्य ले लिये। मॉ-बाप के आश्रय में तो इनका जीवन सुखी और सरस था अतः अभिनव ने सरस साहित्य का अध्ययन किया किन्तु इनका अभाव हो जाने पर उनका समस्त स्नेहस्रोत सूख गया, साहित्य से रुचि समाप्त हो गयी और शिव की भक्ति ने सरस हृदय में स्थान बना लिया।
अभिनवगुप्त के ग्रन्थों की संख्या 41 है जिनमें से इसकी 11 कृत्तियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। मुख्य रूप से आनन्दवर्धन के ध्वन्यलोक पर 'लोचन' तथा नाट्यशास्त्र पर अभिनवभारती नामक टीका साहित्य जगत् में विशेष प्रसिद्ध है। ये ध्वनिसम्प्रदाय के संस्थापक आचार्य माने जाते हैं। इन्होंने तन्त्रशास्त्र और शैवागम पर भी ग्रन्थ लिखा है।
__रससूत्र के व्याख्यान में इनका मत अभिव्यक्तिवाद नाम से अभिहित किया जाता है। इनके अनुसार 'संयोगत् का अर्थ 'व्यङ्ग-व्यञ्जकभावरूपात्' हैं और निष्पत्ति शब्द का अर्थ-अभिव्यक्ति है। रस की स्थिति सहृदय में होती है।
नाट्यशास्त्र-विषयक स्वतन्त्र ग्रन्थ 1. अभिनय दर्पण- यह आचार्य नन्दिकेश्वर की रचना है। काव्यमीमांसा 1.1 में नन्दिकेश्वर को रसविषयक आचार्य के रूप में तथा सङ्गीतरत्नाकर 1/16-17 में सङ्गीत के आचार्य के रूप में याद किया गया है। सङ्गीत के प्रसङ्ग में आचार्य मतङ्ग ने नन्दिकेश्वर को उद्धृत किया है। मतङ्ग चतुर्थ शती के आचार्य हैं। इस प्रकार मतङ्ग से पूर्ववर्ती होने के कारण नन्दिकेश्वर को तृतीय शताब्दी में होना चाहिए। अभिनयदर्पण में 384 श्लोक हैं। इसमें नाट्य की अभिनय-विधा का विस्तार पूर्वक विवेचन हुआ है। अभिनय की दृष्टि से नाट्य के तीन भेदों (नाट्य,नृत्त और नृत्य) का वर्णन करते हुए उनके प्रयोग के समय को भी बतलाया गया है। नन्दिकेश्वर ने नाट्य के छः तत्त्व बतलाएँ हैं- नृत्य, गीत, अभिनय, भाव, रस और ताल। इन तत्त्वों में प्रमुख तत्त्व अभिनय के आङ्गिक, वाचिक, आहार्य और सात्त्विक तथा उनके भेदोपभेदों के अतिरिक्त शिर, ग्रीवा, दृष्टि, हस्त और पाद विषयक अभिनय का अतिविस्तृत विवेचन हुआ है। अभिनयदर्पण में अभिनय से सम्बन्धित विषयों का विस्तृत विवेचन हुआ है।