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दशम अध्याय
शीघ्र ही स्वास्थ्य से हाथ धो बैठता है, किन्तु मांसाहारी जीव ऐसे दुर्गन्धपूर्ण स्थान में जितना समय चाहें ठहर सकते हैं, उनके स्वास्थ्य को किसी प्रकार की भी कोई हानि नहीं होने पाती। .........
इन वातों से स्पष्ट हो जाता है कि मांसाहारी जीव और अन्ना- : - हारी तथा शाकाहारी प्राणियों की शारीरिक रचना में महान अन्तर .. . .. रहता है । यदि मांसाहार मनुष्य का प्राकृतिक (स्वाभाविक). भोजन : ' होता तो मनुष्य की भी शारीरिक बनावट मांसाहारी जीवों के समान · ...
ही होती। मानव की शारीरिक विभिन्न वनावट ही इस बात का जबर्दस्त प्रमाण है कि मांसाहार करना मानव की प्रकृति के सर्वथा - विपरीत है।
. . . ... . . . आज के विज्ञान ने भी यह प्रमाणित कर दिया है कि बन्दर . तथा लंगूर एकदम शाकाहारो प्राणी हैं। जीवनभर ये फल फूल खाकर । ही जीवन का निर्वाह करते हैं। मनुष्य की आन्तरिक तथा बाह्य बनावट भी हू-बहूं वन्दर तथा लंगूर से मिलती जुलती है। अतः मनुष्य मांसाहारी प्राणी नहीं है, प्रत्युत अन्नाहारी तथा फलाहारी है। मांसाहार की आदत उसने बाह्य विकृति से प्राप्त की है , किन्तु वह उसकी प्रकृति के अनुकूल नहीं पड़ती। . ....
.. आर्थिक दष्टि से मांसाहार . . ...... धार्मिक दृष्टि से मांसाहार त्याज्य है, मानव प्रकृति की दृष्टि से .. मांस हेय है। इस सम्बन्ध में पूर्व कहा जा चुका है । आर्थिक दृष्टि से . ... भी यदि विचार किया जाए तो भी मांसाहार देश के लिए घातक
· ठहरता है । गाय, भैंस, बकरी आदि देश के लिए बड़े ही उपयोगी पशु .. ... हैं। मांसाहारियों द्वारा इन का संहार कर देना, देश हित के लिए - बड़ा ही भयंकर .. सिद्ध होता है। उदाहरण के लिए गाय को ही ले