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खण्ड ]
:: प्राग्वाट अथवा पौरवालज्ञाति और उसके भेद ::
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होते, वे सर्व आभूषण उस कुल के विवरण लिखने वाले कुलभाट को दान में दे दिये जाते थे और बड़ा हर्ष मनाया जाता था । उक्त श्रेष्ठि ने घोड़े के ऊपर जो आभूषण लगाये थे, वे किसी के यहाँ से मांगे हुये लाये गये थे । तौरण-वध कर लेने के पश्चात् कुलभाट ने आभूषणों की याचना की, इस पर वर का पिता कुपित हो गया और उसने आभूषण देने से अस्वीकार किया। इस घटना से चरातिथियों एवं कन्यापक्ष के लोगों में दो पक्ष बन गये । एक पक्ष आभूषण कुलभाट को दिलाना चाहता था और दूसरा पक्ष इस प्रथा को बन्द ही करवाना चाहता था । अन्त में बात बैठी ही नहीं । विवाह के पश्चात् यह झगडा जांगड़ा - पौरवाड़ों की समस्त ज्ञाति में विख्यात कलह बन गया । अन्त में वर के पिता के पक्ष में रहे हुए समस्त लोगों को ज्ञाति ने बहिष्कृत कर दिया । ये लोग अपने २ मूलस्थानों को त्याग करके नर्मदा नदी के पार नेमाड़ - प्रान्त में जाकर बस गये। ये वहाँ जाकर वि० सं० १७६० के लगभग बसे, ऐसा लोग कहते हैं । सनावद, महेश्वर, मण्डलेश्वर, खरगौण आदि नगरों में इनके आस-पास के छोटे-बड़े ग्राम कस्बों में ये लोग वहाँ बसे हुए हैं। ये जैनधर्म की दिगम्बर-आम्नाय को मानते हैं। और संख्या में लगभग १००० एक हजार घरों के हैं । नेमाड़-प्रान्त में रहने से अब नेमाड़ी - पौरवाल कहलाने लगे हैं ।
मलकापुरी - पौरवाल इन्हीं नेमाड़ी - पौरवालों के घर हैं, जो मलकापुर में जा बसने के कारण अब मलकापुरी कहलाते हैं । लगभग १५० वर्षों से अब इनमें बेटी-व्यवहार का होना बन्द हो गया है ।
जांगड़ा - पौरवाड़ों के और उक्त दोनों शाखाओं के प्रगतिशील व्यक्ति अब पुनः इनमें एकता और बेटीव्यवहार स्थापित करने का कुछ वर्षों से प्रयत्न कर रहे हैं ।
उक्त घटना से यह सिद्ध हो गया है कि उक्त दोनों शाखाओं का झगड़ा अपनी ज्ञाति में प्रचलित कुलभाटों को वर के घोड़े पर लगे हुये समस्त आभूषणों को प्रदान करने की प्रथा के ऊपर था । अतः यह स्वतः सिद्ध है कि इनका कुलभाटों से सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
कुलभाटों से सम्बन्ध-विच्छेद हो जाने का परिणाम यह हुआ कि उक्त शाखाओं में गोत्र धीरे २ विलुप्त हो गये और इस समय इनमें गोत्रों का प्रचलन ही बन्द हो गया है ।
जांगड़ा - पौरवालशाखा की बिल्कुल ही नहीं मिलती है और न उसके प्रसिद्ध पुरुषों के जीवन-चरित्र ही बने हुये हैं और अगर कहीं होंगे भी तो अभी तक प्रकाश में नहीं आये हैं। इन साधनों के अभाव में इस पक्ष के विषय में मेरे नानी श्वसुर श्री देवीलालजी सुराणा, गरोठ निवासी के सौजन्य से मेलखेडानिवासी श्री किशोरीलालजी गुप्ता (जांगड़ा - पौरवाड़) कार्याध्यक्ष, श्री पौरवाड़ - महासभा ने एक बृहद्पत्र लिख कर जो परिचय मुझको दिया है, उसके आधार पर और मैंने भी मालवा में भ्रमण करके जो कुछ इस पक्ष के विषय में सामग्री एकत्रित की थी के आधार पर ही यह लिखा गया है ।
मैंने बहुत ही श्रम किया कि इस शाखा की इतिहास - साधन-सामग्री प्राप्त हो, परन्तु मेरी अभिलाषा सफल नहीं हो पाई। इस शाखा की कुछ भी साधन-सामग्री नहीं मिलने की स्थिति में इसका इतिहास मैं कुछ अंशों में भी नहीं दे सक रहा हूँ ।
नेमाड़ीशाखा के इतिहास की भी साधन सामग्री पूरा २ श्रम करने पर भी उपलब्ध नहीं हो पाई है, फलतः इसका भी कुछ भी इतिहास नहीं लिखा जा सका है।