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:: प्राग्वाट-इतिहास:
[तृतीय
ग्राम हेमावसवासी श्रे० नगा
उनीसवीं शताब्दी
विक्रमीय उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में ग्राम हेमावस में प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० वरजांग भार्या कनकदेवी का पुत्र श्रे० नगा प्रसिद्ध पराक्रमी हुआ है । उसकी कीर्ति के कारण ग्राम हेमावस दूर २ तक प्रख्यात हो गया था।
श्री गिरनारतीर्थव्यवस्थापक एवं गिरनारगिरिस्थ श्री आदिनाथ-मंदिर का निर्माता प्राग्वाटज्ञातीय श्रीमंत जिनेश्वरभक्त श्रे० जगमाल
विक्रम की उन्नीसवीं शताब्दी
श्रे० जगमाल विक्रम की उन्नीसवीं शताब्दी में जैनसमाज में एक धर्मिष्ठ एवं जिनेश्वरभक्त श्रावक हो गया है । जगमाल ने न्यायनीति से व्यापार में अच्छी उन्नति की और पुष्कल धन का उपार्जन किया। इसके हृदय में गिरनारपर्वत पर एक जिनालय बंधवाने की सद्भावना कभी से जागृत हो गई थी। इसने कई बार तीर्थयात्रायें की थीं। ये उन महापुरुषों की महानता के विषय में सोचा करता था कि जिन्होंने अनंत द्रव्य व्यय करके तीर्थधामों में उत्तमकोटि के विशाल जिनालय बनवाये हैं। संसार की असारता का अनुभव इसको भी भलीविध था। निदान इसने कई लक्ष द्रव्य व्यय करके गिरनारगिरि के ऊपर श्री नेमिनाथटूक में मूलजिनालय श्री नेमिनाथमंदिर के पृष्ठभाग में एक जिनालय का निर्माण करवाया और वि० सं० १८४८ वैशाख कृ० ६ शुक्रवार को महामहोत्सवपूर्वक उसकी प्रतिष्ठा श्रीमद् विजयजिनेन्द्रसरि के करकमलों से करवाकर उसमें मूलनायक श्री आदीश्वरभगवान् और अन्य प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित करवाया।
श्रे० जगमाल गोरधन का निवासी था। गोरथन में आज भी इसके वंशज विद्यमान हैं। आज जो श्री गिरनारतीर्थ की व्यवस्था करने के लिए 'शा. देवचंद्र लक्ष्मीचंद्र' नामक पीढ़ी है, इसके पूर्व श्रे० जगमाल
और रवजी इन्द्रजी तीर्थ की देख-रेख करते थे। आज भी जहाँ उक्त पीढ़ी है, वहाँ एक चौक है और जगमाल के नाम पर वह जगमाल-चौक कहलाता है।
जै० गु० क० भा०३ खं०२ पृ०१३४५ गिती० इति०पृ०३६,५६.