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खण्ड] :: मंत्रीभ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री-वंश और अर्बुदाचनस्थ श्री लूणसिंहवसतिकाख्य का शिल्पसौंदर्य :: [ १६३
अभिषेकयुक्त लक्षमीदेवी की मूर्ति है । मूर्ति के दाही तरफ तिपाई पर कुछ रक्खा है । इसके पास में सप्तमुखी (सप्ताश्व) घोड़ा है और उस पर सूर्य की प्रतिमा है । घोड़े के पार्श्व में फूलमाला है। तदनन्तर एक वृक्ष है । वृक्ष के दोनों ओर दो आसन बिछे हैं। तत्पश्चात् नाटक हो रहा है । पात्र ढोलकियाँ बजा रहे हैं। लक्ष्मी की मूर्ति के बाही ओर हाथी है । हाथी के ऊपर चन्द्र का देखाव है तथा हाथी के पार्श्व में महालय अथवा कोई विमान का दृश्य है । तत्पश्चात् नाटक का दृश्य है। पात्र ढोलकियां बजा रहें हैं । चौथी, पांचवीं, छट्ठी, सातवीं और आठवीं पट्टियों में चतुरंगिणी सैन्य का दृश्य है।
६. देवकुलिका सं० १६ (२४) के द्वितीय मण्डप में सचित्र सात पट्टियाँ हैं। नीचे की प्रथम पट्टी के बाहे कोण में हाथी, घोड़े हैं । तदनन्तर तृतीय पंक्तिपर्यंत स्त्री-पुरुष के जोड़े नृत्य कर रहे हैं । चौथी पट्टी के मध्य में भगवान् पार्श्वनाथ कायोत्सर्ग अवस्था में खड़े हैं । उनके ऊपर सर्प छत्र किये हुये हैं । दोनों ओर श्रावकगण कलश, धूपदान, फूलमाला आदि पूजा की सामग्री लेकर खड़े हैं । शेष पट्टियों में किसी राजा अथवा बड़े राजकर्मचारी का अपनी चतुरंगिणी सैन्य के साथ में भगवान के दर्शन करने के लिये आने का दृश्य है।
७. देवकुलिका सं० ३३ (२६) के दूसरे मण्डप में अलग २ चार देवियों की सुन्दर मूर्तियाँ खुदी हैं।
८. देवकुलिका सं० ३५ (२७) के मण्डप में एक देव की सुन्दर मूर्ति बनी है। संक्षेप में इस वसति का वर्णन इस प्रकार है:
१. एक सशिखर मूलगंभारा और उसके द्वार के बाहर चौकी । २. गुम्बजदार सुदृढ़ गूढमण्डप, जिसके उत्तर और दक्षिण दिशाओं में एक २ चौकी । ३. नवचौकिया और उसमें अति सुन्दर दो गवाक्ष । ४. नवचौकिया से चार सीढ़ी उतर कर सभामण्डप, जिसमें बारह अति सुन्दर स्तंभ, ग्यारह तोरण और
सोलह देवियों की मतियों से अलंकृत बारह वलययक्त विशाल मण्डप । ५. इस वसति में अड़तालीस देवकुलिकायें हैं । जिनमें भ्रमती में बने दोनों तरफ के दो गर्भगृह और अंबाजी ___ की कुलिका भी सम्मिलित है। एक खाली कोटड़ी है। देवकुलिकाओं के द्वार शिल्प की दृष्टि से __ साधारण कलाकामयुक्त हैं। ६. ११४ मण्डप हैं:
३ गूढमण्डप १ और उसके उत्तर तथा दक्षिण द्वारों की दो चौकियों के । ६ नवचौकिया के १६ सभामण्डप १ और उससे जुड़े हुये उत्तर में ६, दक्षिण में ६, पश्चिम में ३ भ्रमती में ।
८६ देवकुलिकाओं के, तथा दक्षिण द्वार के ऊपर के चौद्वारा के ७ ४६ गुम्बज (छत पर बने) हैं।
३ गूढमण्डप १ और उसकी उत्तर तथा दक्षिण द्वारों की दोनों चौकियों के २ ।
देवकुलिका सं०१६ (२५) के भीतर पूर्व की ओर दिवार में अश्वावबोध और समलीविहार-तीर्थ के सुन्दर दृश्य का एक पट्ट लगा हुआ है । यह पट्ट वि० सं० १३३८ में पारासणाकरवासी पाग्वाटज्ञातीय आशपाल ने बनवाया था। इसका विस्तृत वर्णन श्री मुनिजयन्तविजयजीविरचित 'आब' में देखें।