________________
३०० ]
:: प्राग्वाट-इतिहास :
[ तृतीय
धर्मपत्नी मोटीबाई के पुत्र महण नामक ने अपने माता, पिता के कल्याणार्थ श्री नेमिनाथ भ० की मूर्ति श्रीमद् माणिकसरि के पट्टधर श्रीमान् देवसूरि के कर-कमलों से प्रतिष्ठित करवाई।
श्रेष्ठि झांझण और खेटसिंह श्री गुणवसतिकाख्य श्री नेमिनाथ-जिनालय की छब्बीसवीं देवकुलिका में हणाद्रावासी प्राग्वाटशातीय शाह घोना की स्त्री हमीरदेवी के पुत्र शा० झांझण और खेटसिंह ने अपने पिता, माता के श्रेय के लिये मू० ना० श्री आदिनाथबिंब को श्रीमद् रामचन्द्रसरिजी के कर-कमलों से प्रतिष्ठित करवाया ।१
श्रेष्ठि जेत्रसिंह के भ्रातृगण
वि० सं० १३२१ श्री गुणवसतिकाख्य श्री नेमिनाथ-जिनालय में प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० ठ० कुंदा की धर्मपत्नी सहजु के पुत्र श्रे. भुवन, धनसिंह और गोसल ने अपने भ्राता जेत्रसिंह के श्रेय के लिये श्री नेमिनाथबिंब की वि० सं० १३२१ फाल्गुण शु० २ को श्रीमलधारी श्रीमद् प्रभाणंदमुरिजी के कर-कमलों से प्रतिष्ठा करवाई ।२
श्रेष्ठि आसपाल
वि० सं० १३३५ श्री लुणवसतिकाख्य श्री नेमिनाथ-चैत्यालय में आरासणवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० गोनासंतानीय श्रे० मामिग की पत्नी रत्नादेवी के तुलहारि, प्रासदेव नामक दो पुत्र थे।आमिग के भ्राता श्रेष्ठि पासड़ के पुत्र श्रीपाल तथा श्रे० आसदेव की स्त्री सहजूदेवी के पुत्र आसपाल ने भ्रा० धरणि भार्या श्रीमती तथा स्वस्त्री आसिणि और पुत्र लिंबदेव, हरिपाल तथा श्रे० धरणि की स्त्री श्रीमती के पुत्र ऊदा की स्त्री पाल्हणदेवी आदि कुटुम्बसहित संविज्ञविहारी श्री चक्रेश्वरसूरिसन्तानीय श्री जयसिंहमूरिशिष्य श्री सोमप्रभसरिशिष्य श्री वर्धमानसरि के द्वारा श्री मुनिसुव्रतस्वामीबिंब को अश्वावबोधशमलिकाविहारतीर्थोद्धारसहित वि० सं० १३३५ ज्येष्ठ शु० १४ शुक्रवार को प्रतिष्ठित करवाया ।३
वंश-वृक्ष
गोनासन्तानीय श्रे० आमिग [रत्नावती]
पासड़
तुलहारि
भासदेव [सहजूदेवी]
श्रीपाल
आसपाल [आसिणि]
धरणि [श्रीमती]
ऊदा
उदा [पान्हणदेवी]
निवदेव
लिंबदेव
हरिपाल अ० प्रा० जै० ले० सं० मा० २ ले० ३२४, २५३।२६