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खरड ] :: विभिन्न प्रान्तों में प्राक्षा० सद्गृहस्थों द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमायें भारत के विभिन्न प्रसिद्ध २ नगर-हैदराबाद : [et
प्र०वि० संवत् प्र० प्रतिमा प्र० आचार्य प्रा. ज्ञा० प्रतिमा-प्रतिष्ठापक श्रेष्ठि सं० १५८० वै० धर्मनाथ- हेमविमलसूरि पेथापुरवासी प्रा० ज्ञा० महं० धना के पुत्र महं० जीवा ने शु० १२ शुक्र० पंचतीर्थी।
स्वभार्या जसमादेवी, पुत्र गोगा भार्या रूपादेवी के श्रेयोर्थ. सिहोर (काठियावाड) के श्री सुपार्श्वनाथ-जिनालय में सं० १४८० वै० कुन्थुनाथ- हेमविमलसरि वलासरवासी प्रा० ज्ञा० मं० रत्नचन्द्र भा० रजाईदेवी के शु० १२ शुक्र० पंचतीर्थी
पुत्र सं० सहस्रकिरण ने स्वभार्या धरणीदेवी पुत्र तजदेव के सहित.
भारत के विभिन्न प्रसिद्ध २ नगर
बम्बई के श्री आदिनाथ-जिनालय में (बालकेश्वर) सं० १७६४ ज्ये० शांतिनाथ- संविज्ञप० ज्ञान- स्तम्भतीर्थवासी प्रा० ज्ञा० बृ० शा. श्रे. मेघराज की शु० ५ गुरु० चोवीसी विमलसरि स्त्री वैजकुमारी के पुत्र सुसगल ने स्वद्रश्य से.
हैदराबाद के श्री पार्श्वनाथ-जिनालय में (कारबान शाहूकारी) सं० १४५८ फा० पार्श्वनाथ तपा० देवसुन्दर- प्रा. ज्ञा० श्रे० थरणि के पुत्र सिंघा के श्रेयोर्थ उसके भ्राता शु० १ मंगल
सूरि श्रे० कान्हड़ ने. सं० १४८१ वै० अभिनन्दन मडाहड़गच्छीय- प्रा. ज्ञा० श्रे० सामन्त की स्त्री सामलदेवी के पुत्र धर्मचन्द्र शु० ३ शनि०
उदयप्रभसूरि ने भ्राता हीराचन्द्र, शिवराज, सहदेव के सहित पिता-माता
के श्रेयोथे.
श्री पार्श्वनाथ-जिनालय में ((जिडेन्सी बाजार) सं० १५४१ माघ धर्मनाथ- तपा० लक्ष्मीसागर- प्रा० ज्ञा० श्रे० झाटा की स्त्री सुलेश्री के पुत्र जिनदास ने शु० १२ पंचतीर्थी सूरि स्वभा० लक्ष्मीदेवी,पुत्र हरदास,सूरदास के सहित स्वश्रेयोर्थ.
श्री पार्श्वनाथ-जिनालय में (चार कबान) सं० १७०१ मार्गः पार्श्वनाथ- तपा० विजयदेव. प्रा. ज्ञा० श्रे० कान ने.
शु० ५ गुरु० पंचतीर्थी परि
० ले० सं०भा०२ ले०१७३०,१७३५,१७६६, २०४८, २०४८, २०५४ २०६०।