Book Title: Pragvat Itihas Part 01
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Pragvat Itihas Prakashak Samiti

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Page 710
________________ खण्ड ] :. प्राग्वाटज्ञातीय कुछ विशिष्ट व्यक्ति और कुल-महता श्री दयालचंद्र:: [५११ की जागीरों के पट्टे हैं तथा जोधपुर के प्रतापी महाराजा अजीतसिंहजी के और सिरोही के महारावों के भी कई-एक पट्टे-परवाने और पत्र हैं, जिनसे शाह सुखमलजी की प्रतिष्ठा पर पूरा २ प्रकाश पड़ता है। एक पट्टा दिल्ली के मुगल-सम्राट् का भी दिया हुआ है, जिससे यह पता चलता है कि दिल्ली के मुगल-सम्राट् की राज-सभा में भी शाह सुखमलजी का मान था। गूर्जरपति सम्राट भीमदेव प्रथम के महाबलाधिकारी दण्डनायक विमलशाह के वंश में उत्पन्न उत्तम श्रावक वल्लभदास और उनका पुत्र माणकचन्द वि० सं० १७८५ विक्रम की अठारहवीं शताब्दी के चतुर्थ भाग में गूर्जरप्रदेश की राजनगरी अणहिलपुरपत्तन में, जिसकी हिन्दू-सम्राटों के समय में अद्वितीय शोभा एवं समृद्धि रही थी, जो भारत की अत्यन्त समृद्ध नगरियों में प्रथम गिनी जाती थी प्राग्वाटज्ञातीय श्रावक श्रे० वल्लभदास नामक एक प्रसिद्ध व्यक्ति रहते थे। वे बड़े गुणी श्रीमंत थे। उनका पुत्र माणकचन्द्र भी बड़ा धर्मात्मा एवं सद्गुणी था। दोनों पिता और पुत्र गुरु, धर्म एवं देव के परम पुजारी थे। ये गूर्जरसम्राट भीमदेव प्रथम के महाबलाधिकारी दंडनायक विमलशाह के वंशज थे। ये अंचलगच्छीय आचार्य विद्यासागरसूरि के परम भक्त थे । वि० सं० १७८५ में अणहिलपुरपत्तन में उक्त आचार्य का चातुर्मास था । उक्त दोनों पिता-पुत्रों ने गुरु की विवध-प्रकार से सेवा-भक्ति का लाभ लिया था तथा उनके सदुपदेश से माणकचन्द्र ने चौवीस जिनवरों की पंचतीर्थी प्रतिमायें करवा कर उसी वि० संवत् १७८५ की मार्गशिर शु० पंचमी को शुभमुहूत में पुष्कल द्रव्य व्यय करके भारी महोत्सव एवं समारोह के साथ उन प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित करवाई थीं। इस प्रकार जीवन में दोनों पितापुत्रों ने अनेक धर्मकार्य करके अपना श्रावक-जन्म सफल किया । १ वागड्देश राजनगर ड्रङ्गरपुर के राजमान्य महता श्रीदयालचंद्र वि० सं० १७६६ वर्तमान बांसवाड़ा और डूंगरपुर का राज्य वागड़देश के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध रहा है । विक्रम की अठारहवीं शताब्दी के प्रारंभ में प्राग्वाटज्ञातीय वृद्धशाखीय महता हीरजी नामक प्रसिद्ध पुरुष हो गये हैं । वे बड़े धर्मात्मा थे। उनकी स्त्री का नाम भी हीरादेवी था । हीरादेवी के रामसिंह नामक पुत्र हुआ, जिसका विवाह रूपवती एवं गुणवती कन्या रायमती से हुआ था। रायमती के सुरजी नामक पुत्र था । सुरजी की स्त्री सुरमदेवी के जादव और महता दो पुत्र थे। जादव के करण, माधव, मदन और मुरार नामक चार पुत्र हुये थे । महता मदन की स्त्री गंभीरदेवी थी । भीरदेवी की कुक्षी से राजमान्य प्राग्वाटज्ञातिशृंगार श्रीदयाल नामक पुत्र हुना। २.. १ म०प० पृ०३६४ २० घा०प्र० ले० सं० मा० १ लेखांक १४६१

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