Book Title: Pragvat Itihas Part 01
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Pragvat Itihas Prakashak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 701
________________ ५०२ ] :: प्राग्वाट - इतिहास :: [ तृतीय सम्राट् के प्रतिनिधि के पास पहुँचा और उसने कोचर श्रावक के विषय में अनेक झूठी २ बातें बनाई। इतना ही नहीं प्रतिनिधि को इस सीमा तक भड़काया कि उसने तुरन्त कोचर को बुलाकर कारागार में डाल दिया । इस कुचेष्टा से सं० साजणसी का भारी अपयश हुआ और सर्वत्र उसकी निन्दा होने लगी । शंखलपुर की प्रजा और दूर २ के संघ कोचर श्रावक को मुक्त कराने का प्रयत्न करने लगे। अंत में सं० साजणसी को अपने किये पर बड़ा पश्चात्ताप हुआ । उधर सम्राट् के प्रतिनिधि को भी समस्त भेद ज्ञात हो गया, अतः फलतः कोचर श्रावक तुरन्त देखिये- (१) वाडी पार्श्वनाथ - विधिचैत्य-प्रशस्ति शिलालेख । D. C. M. P. (G. O, S. VO. LXXVI.) go 828 (२) जिनकुशलसूर का स्वर्गवास वि० सं० १३८६ में हुआ और जिनोदयसूरि उनके पांचवे पट्टधर थे । 'गच्छमतप्रबंध' पृ० ३७ (३) 'शतक' ॐ ॥ सं० १४१६ भाग व० ५ सा० दाहड़" 'संवत् १४२३ वर्षे सा० मेहासुश्रावकपुत्र सा० उदयसिंहेन पुत्र सा० लूणा-वयराभ्या युतेन स्वपुत्रिकायापुण्यार्थं ।" 'शतकवृति पुस्तकं' मूल्येन गृहीत्वा निजखरतरगुरु श्री जिनोदयसूरिणं प्रादामि । [जैसलमेर बृहद् भंडार ] 'जिनचंद्रसूरि जिनकुशल सूरि - जिनपद्मसूरि गुरवः स्युः । जिनलब्धिजिनचन्द्रो जिनोदयः सूरि जिनराजः ||१६|| ' [ श्रीकल्पसूत्रम् ] प्र० सं० पृ० १५ 'श्री खरतरगच्छे श्री जिनोदयसूरिभिः' जै० ले० २२६७ कोचर-व्यवहारी- रास-कर्त्ता ने रास की रचना संभवतः श्रुति के आधार पर की है प्रतीत होता है। देपाल और सुमतिसाधुसूरि श्रवश्यमेव समकालीन थे । परन्तु कोचर श्रावक को इनका समकालीन मानने में खरतरगच्छपट्टावली का उपरोक्त उद्धरण तथा प्रा० जै० सं० लेखक ३७ बाधक हैं । 'कोचर व्यवहारी-रास' से खरतरगच्छपट्टावली तथा उक्त लेखांक अधिक विश्वसनीय भी है, क्योंकि उक्त रास की रचना वि० सं० १६८७ में हुई है और इनकी सोलहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में जब कि देपाल कवि भी विद्यमान् था और जैन कवियों में अग्रगण्य महाकवि था । फिर भी रास में वर्णित घटना को पाठकों के विचारार्थं यहां वर्णन कर देता हूँ । देपाल कवि एक समय कोचर की कीर्त्ति श्रवण करके शंखलपुर पहुँचा और कोचर से मिला और उसके अधीन शंखलपुर नगर के अधीन के बारहग्रामों में अद्भुत ढंग से पलायी जाती हुई जीव दया को देख कर वह अत्यन्त मुग्ध हुआ और श्रावक कोचर की कीर्त्ति में उसने कविता रची और कोचर को सुनाई। कोचर ने महाकवि देपाल का बहुत संमान किया और उसको बहुत द्रव्य दान में दिया । देपाल कवि जब खंभात पहुँचा तो उसने गुरु महाराज के समक्ष कीर्त्तिशाली कोचर श्रावक की और उसके शासन प्रबंध तथा जीव- दया-प्रचार की भूरी २ प्रशंसा की। समस्त श्रीसंघ तथा गुरुमहाराज को कोचर की धर्म -श्रद्धा सुनकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई । परंतु सं० साजणसी को ईर्ष्या हुई कि मेरी सहायता से उन्नत हुआ कोचर मुझसे भी अधिक कीर्त्ति एवं यश का भाजन बनता है और फिर मेरे ही आश्रित कवि द्वारा उसकी कीर्त्तिकविता की जाती है। सं० साजणसी ने कोचर श्रावक के विरुद्ध षडयंत्र रचने का विचार किया और उसको शासन - कार्य से च्युत कराकर कारागार में डलवाने का दृढ़ संकल्प किया । सं० साजणसी गुजरात के शासक के पास पहुंचा और कोचर श्रावक के विषय में अनेक झूठी २ बातें बनाकर उसको कोचर पर रुष्ट किया । इतना ही नहीं कोचर को बुलवा कर बन्दीगृह में डलवाया । सं० साजणसी के इस कुकृत्य से श्रीसंघ में सं० साजणसी की भारी अपकीर्त्ति हुई तथा देपाल कवि पर भी लोगों की श्रद्धा हुई। यह समस्त घटना घटी, उस समय देपाल कवि वहाँ नहीं था, वह शत्रु जयतीर्थ की यात्रा को गया हुआ था। जब वह लौट कर आया और उसने कोचर श्रावक को कारागार का दंड मिला सुना, उसने तुरन्त सं० साजणसी की स्तुति में कविता रची। कविता को सुनकर सं० साजणसी अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसने देपाल का समुचित सत्कार किया । उचित अवसर देख कर देपाल ने सं ० साजणसी से कहा कि आपकी महति कृपा से बहुचरादेवी के पूजारीगण अत्यन्त प्रसन्न हुये हैं तथा बहुचरादेवी के आगे लोग निडरता से पशुबली करते हैं और इस प्रकार बहुचरादेवी का वह पूर्व गौरव पुनः स्थापित हो गया है । यह सुनकर सं० साजणसी अत्यन्त लज्जित हुआ और उसने देपाल कवि को वचन दिया कि वह तुरन्त गुजरात के शासक के पास जाकर कोचर को मुक्त करावेगा और उसको पुनः शंखलपुर का शासन- भार दिलावेगा । देपाल कवि सं० साजणसी की इस हृदय की सरलता पर अत्यन्त मुग्ध होकर अपने स्थान पर चला गया । सुअवसर देखकर सं० साजणसी सम्राट् के प्रतिनिधि ( गुजरात का शासक) के पास पहुँचा । सम्राट् के प्रतिनिधि को भी कोचर को कारागार में डलवाने का भेद ज्ञात हो गया था; अतः अधिक विचार नहीं करना पडा। कोचर मुक्त कर दिया गया और वह पुनः शंखलपुर का शासक नियुक्त किया गया । कीर्त्तिशाली कोचर ने जीव- दया-पालन में अपनी सम्पूर्ण श्रायु व्यतीत की तथा न्याय एवं धर्मं-नीति से शंखलपुर का शासन किया ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722