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:: प्राग्वाटज्ञातीय कुछ विशिष्ट व्यक्ति और कुल - श्रे० जसवीर ::
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शा० तेजपाल के ज्येष्ठ पुत्र वस्तुपाल की स्त्री अनोपमादेवी की कुक्षी से उत्पन्न ग्रा० सुखमन, इन्द्रभास और उदयभाग नामक तीनों आताओं ने श्री दशा ओसवालों के श्री आदीश्वर - जिनालय के खेलामंडपस्थ उत्तराभिमुख श्री चन्द्रप्रभस्वामी की बड़ी प्रतिमा महोपाध्याय श्री मेघविजय मणिद्वारा प्रतिष्ठित करवाई। शा० पुन्ज के परिवार की कीर्त्ति तब तक स्थायी रहेगी, जब तक उसकी स्त्री उछरंगदेवी, पुत्र तेजपाल और तेजपाल के पुत्र संघमुख्य वर्धमान आदि के द्वारा उपरोक्त तीनों प्रसिद्ध जिनमंदिरों में प्रतिष्ठित प्रतिमायें विद्यमान रहेंगी ।
वंशवृक्ष
शा० पुंजा [ उछरंगदेवी ]
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तेजपाल [ चतुरंगदेवी,
वर्धमान
वस्तुपाल [ अनूपमदेवी ] [केसरदेवी, सरूपदेवी, सुखमादेवी ]
I
देवचंद
सुखमल इन्द्रभाग
उदय माण
लखमादेवी ] T
गौड़ीदास
महिमाश्री धनराज [ अनरूपदेवी ]
[रूपी]
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गजसिंह
श्री वागड़देशराजनगर श्री डूंगरपुर के सकलगुणनिधान कृतसुर धर्मभारधुरंधर चैत्यनिर्माता श्रे० जसवीर
वि० सं० १६७१
* विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी में डूङ्गरपुर के राजसिंहासन पर जब महाराउल श्री पुन्जराज विराजमान थे, उस समय लघुसज्जन प्राग्वाटज्ञातिशृंगारहार श्रेष्ठि मंडन एक बड़े ही सज्जन श्रावक हो गये हैं। इनकी स्त्री का नाम मनरंगदेवी था । मनरंगदेवी सचमुच ही महासती शीलालंकारधारिणी स्त्रीशिरोमणि महिला थी । मनरंगदेवी की कुक्षी से जसवीर और जोगा नामक दो पुत्ररत्न पैदा हुये । प्रथम पुत्र जसवीर समस्त गुणों की खान, महादानी, पुण्यात्मा, धर्मभारधुरंधर सुकृती था। जसवीर के दो स्त्रियाँ थीं । प्रथम जोड़ीमदेवी और द्वितीय पागरदेवी । जोड़ीदेवी की कुक्षी से पुत्ररत्न काहनजी पैदा हुआ था। जसवीर के भ्राता जोगा की स्त्री का नाम भी जोड़ीमदेवी 'वस्तुपाल भार्या अनोपमादे सुत सुखमल्ल, इन्द्रभाण, उदयभाण नामभिः चन्द्रप्रभबिंबं का० प्र० श्री ..........मेघविजयगणि ॥ दशा० आदीश्वर चैत्य,
* जै० घा० प्र० ले० सं० भा० १ लेखक १४६२.