Book Title: Pragvat Itihas Part 01
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Pragvat Itihas Prakashak Samiti

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Page 704
________________ ::प्राग्वाटज्ञातीय कुछ विशिष्ट व्यक्ति और कुल-शा०पंजा और उसका परिवार :: शा० पुन्जा और उसका परिवार विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में सिरोही नगर में प्राग्वाटज्ञातीय शाह पुंजा रहता था। उसकी स्त्री का नाम उछरंगदेवी था। उसकी कुक्षी से तेजपाल नामक भाग्यशाली पुत्र हुआ। तेजपाल के चतुरंगदेवी शा० पुजा और उसका पुत्र और लक्ष्मीदेवी नाम की दो स्त्रियाँ थीं। चतुरंगदेवी की कुक्षी से वस्तुपाल, वर्धमान तेजपाल और उसका गृहस्थ और धनराज नामक तीन पुत्र और एक पुत्री हुई । पुत्री ने दीक्षा ग्रहण की और वह महिमाश्री नाम से प्रसिद्ध हुई । वस्तुपाल का विवाह अनुपमादेवी के साथ हुआ और उसके सुखमल्ल, इन्द्रमाण और उदयभाण नामक तीन पुत्र हुये । वर्धमान इन तीनों में अधिक प्रभावशाली था। उसके तीन स्त्रियां थीं-केसरदेवी, सरुपदेवी और सुखमादेवी। सुखमादेवी के देवचंद नामक पुत्र हुआ। महिमाश्री ने साध्वी-जीवन व्यतीत करके अपना आत्म-कल्याण किया । चौथा पुत्र धनराज था और रूपवती नामा उसकी स्त्री थी। ___ तेजपाल की द्वितीय स्त्री लक्ष्मीदेवी की कुक्षी से गौड़ीदास नामक पुत्र हुआ। गौड़ीदास की स्त्री अनुरूपदेवी थी और उसके गजसिंह नामक पुत्र हुआ। तेजपाल ने विक्रम संवत् १६६१ श्रावण कृष्णा 8 रविवार को तेजपाल द्वारा प्रतिष्ठित तपगच्छीय भ. श्री विजयप्रभसूरि, प्रा. श्री विजयरत्नसूरि के निर्देश से उपा० प्रतिमायें. । श्री मेघविजयगणि के करकमलों से श्री शंखेश्वर-पार्श्वनाथ-जिनालय के खेलामंडप के उत्तराभिमुख प्रालय में श्री आदिनाथ भगवान् की बड़ी प्रतिमा१ और दशा ओसवालों के श्री आदीश्वर-जिनालय के खेलामंडप में पश्चिमाभिमुख श्री मुनिसुव्रतस्वामीर की बड़ी प्रतिमा बड़ी धूम-धाम से सपरिवार प्रतिष्ठित करवाई। दशा ओसवालों के श्री आदीश्वर-जिनालय के खेलामंडप में शा० पुजा की स्त्री और तेजपाल की माता उछरंगदेवी ने जगद्गुरु सरिसम्राट् श्रीमद् हीरविजयसरिजी की एक सुन्दर प्रतिमा वि० सं० १६६५ वै० शु० ३ तेजपाल की माता उछरंग- बुधवार को तपागच्छीय भ० श्रीविजयसेनमरि के पट्टालंकार भ० श्री विजयतिलकसरि देवी द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमा के द्वारा अपने पुत्र तेजपाल और तेजपाल के पुत्र वस्तुपाल, वर्धमान, धनराज आदि प्रमुख परिजनों के श्रेय के लिये प्रतिष्ठित करवाई ।३ १-श्री शंखेश्वर-पार्श्वनाथ-मन्दिर के दक्षिण दिशा के श्रालयस्थ श्री आदिनाथबिंब का लेखांश 'श्री तेजपाल भार्या चतुरंगदे पुत्र सा० वस्तुपाल वर्धमान धनराज, तस्य पत्नी रूपी श्री आदिनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं तःमः श्री विजयप्रभसूरि प्रा० श्री विजयरत्नसूरिनिर्देशात उपा० श्री मेघविजयगणिभिः॥' २-दशा ओसवालों के आदीश्वर-जिनालय के खेला-मण्डपस्थ पश्चिमाभिमुख सपरिकर श्री मुनिसुव्रतबिंब का लेखांशः 'शाह पूजा भार्या उछरंगदे तस्य पुत्र सा तेजपाल तस्य भार्या चतुगदि सपरिकर श्री मुनिसवतबिंब कारापितं ॥श्री।।' ३-'संवत् १६६५ वर्षे वै० सु०३ बुधे भट्टारक श्री हीरविजयसरिसूतिः प्राग्वाटज्ञातीय सा० पुजा भा० बा० उछरंगदे नाम्न्या स्वसुत सा० तेजपाल तत्पुत्र सा० वस्तुपाल वर्धमान धनराज प्रमुखश्रेयसे कारितं प्रति० तपागच्छे भः श्री विजयसेनसारिपट्टालंकार श्री विजयतिलकसूरिभिः ॥ श्रीरस्तुसंघस्य ।। दशा० श्रोस० श्री श्रादी० जिनालय,

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