Book Title: Pragvat Itihas Part 01
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Pragvat Itihas Prakashak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 700
________________ :: प्राग्वाटज्ञातीय कुछ विशिष्ट व्यक्ति और कुल - कीर्तिशाली कोचर श्रावक :: खण्ड ] शंखलपुर के अधीन निम्न ग्राम थे: २- वड्डावली १- हासलपुर ५-बहिचर ह - मोढ़ेरू ६–टूहड़ १०- कालहर ११ - छमीघु कोचर श्रावक इस प्रकार बारह ग्रामों का शासक बनकर सं० साजणसी के साथ उपाश्रय में पहुँचा और गुरु को वंदना करके वहाँ से राजसी ठाट-बाट एवं सैन्य के साथ शंखलपुर पहुँचा । उपरोक्त बारह ग्रामों में हर्ष मनाया गया तथा शंखलपुर में समस्त प्रजा ने श्रावक कोचर का भारी स्वागत करके उसका नगर में प्रवेश कराया। कोचर के परिजन, माता, पिता एवं स्त्री को अपार आनन्द हुआ । ३ - सीतापुर ७- देलवाड ४ - नाविश्राणी ८-देनमाल [ ५०१ कोचर श्रावक ने ज्यों ही शंखलपुर का कार्यभार संभाला, उसने अपने अधीन के बारह ग्रामों में पशुबली को एक दम बंद करने की तुरंत राज्याज्ञा निकाली । समस्त प्रजा कोचर के दिव्य गुणों पर पहिले से ही मुग्ध ही, कोचर का जीवदया प्रचार इस राज्याज्ञा से कोचर की दयाभावना का प्रजा पर गहरा प्रभाव पड़ा और स्थान २ तथा शंखलपुर में शासन होती पशुबली बन्द हो गई । कोचर ने बारह ग्रामों में जीवदया - प्रचार कार्य तत्परता से प्रारम्भ किया । पानी भरने के तलावों एवं कुओं पर पानी छानने के लिये कपड़ा राज्य की ओर से दिया जाने लगा, यहाँ तक कि पशुओं को भी उपरोक्त बारह ग्रामों में अन्ना पानी पीने को नहीं मिलता था । उसने अपने प्रांत में आखेट बन्द करवा दी। जंगलों में हिरण और खरगोश निश्चिंत होकर रहने लगे । जलाशयों में मछली का शिकार बन्द हो गया । इस प्रकार आमिष का प्रयोग एकदम बन्द हो गया । शंखलपुर के प्रान्त में इस प्रकार अद्भुत ढंग से उत्कृष्ट जीवदया के पलाये जाने से कोचर श्रावक की कीर्त्ति दूर-दूर तक फैलने लगी। दूर के संघ कोचर का यशोगान करने लगे। कवि, चारण भी यत्र-तत्र सभाओं में व्याख्यानकोचर श्रावक की कीर्त्ति का स्थलों में, गुरु मुनिमहाराजों, साधु-संतों के समक्ष कोचर की कीर्त्ति करने लगे । कोचर प्रसार और सं० साजरा सी श्रावक को शंखलपुर का शासन प्राप्त हुआ था, उसमें खंभात के श्री संघ तथा विशेषको ईर्ष्या कर सं० साजणसी का अधिक सहयोग था, अतः खंभात में कोचर श्रावक की कीर्त्ति धिक प्रसारित हो और खंभात का श्री संघ उसकी अधिक सराहना करे तो कोई आश्चर्य नहीं । खंभात में जब घर-घर और गुरु- मुनिराजों के समक्ष भी कोचर की कीर्त्ति गाई जाने लगी तो सं० साजणसी को इससे अत्यधिक ईर्ष्या उत्पन्न हुई कि उसके सहयोग से बना व्यक्ति कैसे उससे अधिक कीर्तिशाली हो सकता है । वह अवसर देख कर * 'कोचर-व्यवहारी रास' के कर्त्ता ने उपरोक्त वार्ता को देपाल नामक कवि का वर्णन करके चर्चा है। राम के कर्त्ता ने देपाल को समराशाह के कुलका आश्रित कवि होना लिखा है, जो भ्रमात्मक है; क्योंकि देपाल की अनेक कृत्तियाँ उपलब्ध हैं, जो सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में रची हुई हैं और समराशाह चौदहवीं शताब्दी के अन्त में हुआ है, अतः अघटित है । देपाल समराशाह के वंशजों का समाश्रित भले ही हो सकता है। देपाल के लिये देखो:- (१) ऐ० रा० सं० भा १ पृ० ७ (२) जै० गु० क० भा० १५० ३६-३६ दूसरी बात - स्वयं कोचर और देपाल किसी भी प्रकार समकालीन सिद्ध नहीं किये जा सकते। खरतरगच्छ नायक जिनोदयसूरि का कोचर श्रावक ने पुरप्रवेश बड़े धूमधाम से करवाया था, जिसका उल्लेख सोलहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में लिखी गई खरतरगच्छ की प्राचीन पहावली में इस प्रकार उपलब्ध है 'वर्त्तित द्वादशयामारिघोषणेन सुरत्राण सनाखत सा० कोचर श्रावकेण सलखणपुरे कारित प्रवेशोत्सवाना' जिनोदयसूरि का काल वि० सं० १४१५-३२ है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722