Book Title: Pragvat Itihas Part 01
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Pragvat Itihas Prakashak Samiti

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Page 696
________________ खण्ड] [४६७ :: प्राग्वाटज्ञातीय कुछ विशिष्ट व्यक्ति और कुल-रणकुरान वीरवर श्री कालूशाह:: प्राग्वाटज्ञातीय कुछ विशिष्ट व्यक्ति और कुल रणकुशल वीरवर श्री कालूशाह विक्रम की तेरहवीं शताब्दी राजस्थान में गढ़ रणथंभौर का महत्त्व राणा हमीर के कारण अत्यधिक बढ़ा है। राणा हमीर वीरों का मान करता था और सदा वीरों को अपनी सैन्य में योग्य स्थान देने को तत्पर भी रहता था। उसकी सैन्य में यहाँ तक कि यवन-योद्धा भी बड़ी श्रद्धा एवं भक्ति से भर्ती होते थे और राणा हमीर उनका बड़ा वंश-परिचय विश्वास करता था । राणा हमीर के समय में रणथंभौर का जैन श्रीसंघ भी बड़ा ही समृद्ध एवं गौरवशाली रहा है। अनेक जैन योद्धा उसकी सैन्य में बड़े २ पदों पर आसीन थे । राणा हमीर जैन-धर्म का भी बड़ा श्रद्धालु था तथा जैन यतियों एवं साधुओं का बड़ा मान करता था । यही कारण था कि जैनियों ने राणा हमीर की युद्ध-संकट एवं प्रत्येक विषम समय में तन, मन एवं धन से सेवायें की थीं। राणा हमीर की सैन्य में जो अनेक जैनवीर थे, उनमें प्राग्वाटज्ञातीय प्रतापसिंह की आज्ञाकारिणी धर्मपत्नी यशोमती की कुक्षी से उत्पन्न नरवीर कालुशाह भी थे। कालूशाह के पिता प्रतापसिंह कृषि करते थे और उससे प्राप्त प्राय पर ही अपने वंश का निर्वाह करते थे। कृषि करने वालों में उनका बड़ा मान था। हरिप्रभसूरि के उपदेश से उनमें धर्म की लग्न जगी और वे अत्यन्त दृढ़ धर्मी और क्रियापालक बन गये। एक बार जब हरिप्रभसूरि का रणथंभौर में पदार्पण कालूशाह के पिता प्रतापसिंह । हुआ था, तो उन्होंने सूरि के नगर-प्रवेश का महोत्सव करके पुष्कल द्रव्य व्यय किया था और चातुर्मास का अधिकतम व्यय-भार उन्होंने ही उठाया था। तत्पश्चात् दैवयोग से उनको कृषि में दिनोंदिन अच्छा लाभ प्राप्त होता गया और वे एक अच्छे श्रीमन्त कृपक बन गये। नरवीर कालूशाह अपने पिता की जब सहायता करने के योग्य वय में पहुँच गया तो उसने पिता को समस्त गृहसंबंधी चिंताओं से मुक्त कर दिया और आप कृषि करने लगे और घर की व्यवस्था का चालन करने लगे। कालूशाह बचपन से ही निडर, साहसी और सत्यभाषी थे। ये किसी से नहीं डरते थे । कालूशाह का समय सामंतशाही काल था, जिसमें प्रजा का भोग एवं उपभोग एक मात्र राना, सामंत और ग्रामठक्कुर के लिये ही होता .. था और प्रजा भी इसी में विश्वास करती थी। परन्तु नरवीर कालूशाह ऐसी प्रजा में कालूशाह की साहसिकता " से नहीं थे। वे स्वाभिमानी थे और न्याय एवं नीति के लिये लड़ने वाले थे। ये दिव्य गुण इनमें बचपन से ही जाग्रत थे। एक दिन राणा हमीर के कुछ सेवक अश्वशाला के कुछ घोड़ों को बाहर चराने के लिये ले गये। कालुशाह का खेत हरा-भरा देखकर उन्होंने घोड़ों को खेत में चरने के लिये छोड़ दिया। कालूशाह का एक सेवक खेत की रखवाली कर रहा था। उसने घोड़ों को हांक कर खेत के बाहर निकाल दिया। इस पर

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