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प्र० वि० संवत्
सं० १३२० माघ
शु० गुरु ०
. शु० १० शुक्र ०
सं० १५१२
सं० १४३६
सं० १५०३ आषाढ़ मुनिसुव्रत
स्वामि
सुमतिनाथ
सं० १५१८ वै० शु० १३
पालीताणा में माधुलालजी की धर्मशाला के श्री सुमतिनाथ - जिनालय में
पार्श्वनाथ
तपा० देवचन्द्रसूर
तपा० जिनरत्न -
सूरि
तपा० रत्नशेखर
सूरि
सं० १५२३ वै० कृ० ७ रवि ०
प्र० प्रतिमा
आदिनाथ
सं• १४८६ श्राषा० शु० ५
सुमतिनाथ
चोवीशी
सं० १५५२ माघ
संभवनाथ
कु० १२ बुध ० सं० १७०२ मार्ग ० आदिनाथ
शु० ६ शुक्र०
सं० १५०४ फा० शु० ६ सोम०
सुमतिनाथ
: प्राग्वाट - इतिहास ::
प्र० श्राचार्य
प्रा० ज्ञा० प्रतिमा प्रतिष्ठापक श्रेष्ठि
राका (पूर्णिमा)- प्रा० ज्ञा० श्रे० वीरदत्त के पुत्र व्य० जाला की भार्या गच्छीय महीचंद्रसूरि माणिका ने स्वश्रेयोर्थ.
तपा० लक्ष्मी
सागर रि
तपा० लक्ष्मीसागरसूरि
बृ० तपा० उदय
सागर छरि अंचलगच्छीयकल्याखसागरसूरि
तारंगातीर्थस्थ श्री
शांतिनाथ - सोमसुन्दरसूरि चोवीसी
[ तृतीय
अजितनाथ - साधुपूर्णिमापूर्णचन्द्रसूरि
चोवीसी
प्रा०ज्ञा० ० हाला भा० दानदेवी के पुत्र वींगिरण ने .
सहूश्रालावासी प्रा० ज्ञा० श्रे० पींचा भा० लक्ष्मणदेवी के पुत्र वीरम, धीरा, चींगा ने माता-पिता के श्रेयोर्थ. प्रा० ज्ञा० ० आसपाल भा० पाचूदेवी के पुत्र धनराज भा० चमकूदेवी के पुत्र माधव ने स्वभा० वाल्हीदेवी, भ्रातृ देवराज भा० रामादेवी, देवपाल आदि के सहित. सखारिवासी प्रा० ज्ञा० शा ० जावड़ भा० वारुमती के पुत्र हरदास ने स्वभा० गौमती, भ्रातृ देवराज भा० धर्मिणी के सहित श्रेयोर्थ.
सीरु' जवासी प्रा० ज्ञा० ० बाला भा० मानदेवी के पुत्र समघर ने स्वभा० जासीदेवी, धर्मदेवी, पुत्री लाली आदि के सहित स्वश्रेयोर्थ.
प्रा० ज्ञा० प० सधा भा० श्रमकूदेवी के पुत्र मूलराज ने स्वभा० हंसादेवी, पुत्र हर्षचन्द्र, लक्षराज के सहित स्वश्रेयोर्थ. दीववंदरवासी प्रा० ज्ञा० नागगोत्रीय मं० विमलसंतानीय मं० कमलसिंह के पुत्र मं० जीवराज के पुत्र मं० प्रेमचन्द्र, मं० प्रागचन्द्र, मं० श्राणन्दचन्द्र ने पुत्र केशवचन्द्र आदि के सहित स्वपिता जीवराज के श्रेयोर्थ.
प्रा० ज्ञा० ० राणा की सन्तान में श्रे० रत्नचन्द्र भार्या धरणी के पुत्र पूर्णसिंह ने भा० देसाई, भ्रातृ हरिदास, स्वपुत्र पासवीर के सहित.
जै० ले० सं० भा० २ ले० १७८०, १७५२, १७५३, १७५४, १७५६, १७५१, १७६१, १७४३, १७३१, १७३२ ।
अजितनाथ - जिनालय में
प्रा० ज्ञा० मंत्रि बाहड़ के पुत्र सिंह भा० पूजलदेवी के पुत्र बहुआ ने भार्या कपूरीदेवीसहित स्वश्रेयोर्थ.