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* प्राग्वाट - इतिहास
श्रेष्ठि गुणधर और उसका विशाल परिवार वि० सं० १३३०
[ तृतीय
विक्रम की बारहवीं शताब्दी के अंत में प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० धनेश्वर हो गया है। उसका कुल प्राचीन कुलों में से था और प्रतिष्ठित एवं गौरवशाली था । श्रे० धनेश्वर के धनदाक नामक एक धर्मात्मा एवं गुणवान् पुत्र हुआ । काशहदग्राम के श्री आदिनाथ - जिनालय में उसने मूलनायक प्रतिमा विराजमान करवाई थी । श्रे० धनदाक के तीन संतान हुई । ब्रह्मदेव और वाग्भट नामक दो पुत्र हुये और लक्ष्मणीदेवी नाम की एक पुत्री हुई । श्रे० ब्रह्मदेव का विवाह मन्दोदरी नामा सुशीला कन्या के साथ हुआ । मन्दोदरी की कुक्षि से चार पुत्र उत्पन्न हुये । आल्हा, साल्हाक, राज्हाक और एक और । श्रे० वाग्भट के गोगाक नामक पुत्र था । गोगाक की स्त्री का नाम समूला था । समूला की कुक्षि से ऊधिग, धांधू, आकड़ ये तीन पुत्र और साल्हू नामक एक पुत्री हुई। तीनों पुत्रों की सुभगादेवी, श्रीदेवी और दाखीबांई नामा क्रमशः स्त्रियाँ थीं ।
श्रे० आल्हाक निर्मलात्मा, धर्मबुद्धि और सर्वदोष-विहीन नरवर था। उसकी स्त्री स्त्नदेवी भी वैसी ही चतुरा, गुणशीला गृहिणी थी । रत्नदेवी के चार संतान उत्पन्न हुई । गुणधर, यशधर, चाहणीदेवी और समधरइस प्रकार तीन पुत्र और एक पुत्री हुई । श्रे० साल्हाक श्रे० आल्हाक का छोटा भाई था । वह भी गुणवान् और सज्जन था । श्रे० राल्हाक श्रे० साल्हाक से छोटा था । इसकी स्त्री कुमारदेवी थी । कुमारदेवी से इसको ब्रह्मनाग, काल्हूक और रत्नसिंह नामक तीन पुत्रों की और ब्राह्मी और सोहगा नामक दो पुत्रियों की प्राप्ति हुई । इस प्रकार पांच सन्तान हुई ।
० गुणधर जो ० ल्हाक का ज्येष्ठ पुत्र था बड़ा ही न्यायशील एवं तप, दान, शील और भावनाओं में उत्कृष्ट श्रावक था । ऐसी ही उसकी राजिमती नामा गुणगर्भा स्त्री थी । राजिमती के पार्श्वभट, वीरा, अम्बा, , लींबा, सोम, देव, शीलू, हीर और लडुहित नामक संतानें उत्पन्न हुई । द्वितीय पुत्र वीरा का विवाह राजश्री से हुआ था और उससे उसको वि० सं० १३३० तक जगपाल, हरपाल, और देवपाल नामक तीन पुत्रों की प्राप्ति हुई । तृतीय पुत्र अम्बा की स्त्री ललिता थी और ललिता के नरपाल नामक एक ही उक्त समय तक पुत्र था । श्रे० गुणधर का चौथा पुत्र लीम्बा था । लींबा को अपनी स्त्री कल्याणदेवी से उक्त समय तक विजय, श्रीयश, धरय और नरसिंह नामक चार पुत्र और पाती नामक पुत्री - इस प्रकार पाँच संतानों की प्राप्ति हुई । श्रे० गणधर ने वि० सं० १३३० में निवृत्तिगच्छीय श्रीमद् भुवनरत्नसूरि-आनन्दप्रभसूरि-वीरदेवसूरि के पट्टधर श्रीमद् कनकदेवसूरि के सदुपदेश से अपने चतुर्थ एवं सुयोग्य भ्राता समधर की सुसम्मति से अपनी न्यायोपार्जित लक्ष्मी का सदुपयोग करके अत्यन्त भक्ति-भावपूर्वक 'श्री शांतिनाथ - चरित्र' की प्रति ताड़पत्र पर लिखवायी ।
श्रे० समधर की स्त्री कर्मणदेवी थी । उसके कोल, आसा, पासल, सेढ़ा, पूना, हरिचन्द्र और वयर नामक पुत्र थे और पासल की स्त्री साजिणी के विजयसिंह और नयशाक नामक दो पुत्र उत्पन्न हो चुके थे । उक्त वि० सं० अर्थात् १३३० में श्रे० गुणधर इतने प्रड़े विशाल एवं प्रतिष्ठित कुल का गृहपति था ।
प्र० सं० भा० १ पृ० २६ प्र० ता० प्र० ३८ (श्री शांतिनाथ चरित्र)