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प्राग्वाट-इतिहास:
[तुतीय
राज्य में सो० सोमसिंह भार्या बाई कर्मावती की पुत्री बाई बछाई की पुत्री सोनी ने कर्मों का क्षय करने के लिये तथा मोक्ष के अर्थ पासवीर, सा० राघवजी, धनुश्रा की सांनिध्यता में ४५ आगमों का भण्डार वि० सं० १७२१ पौष कृ. १० को संस्थापित करवाया ।१
श्रेष्ठि रामजी वि० सं० १७२६
तपागच्छीय श्रीमद् विजयदेवसरि की सम्प्रदाय के वाचक श्रीमद् सौभाग्यविजयजी ने वि० सं० १७२६ में अणहिलपुरपत्तन में चातुर्मास किया था । उनकी निश्रा में पण्डित हर्षविजय भी थे । पत्तन में अनेक गर्भश्रीमंत रहते थे । उनमें प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० विसुधा का पुत्र रामजी धनी, समकितधारी, विनयवंत, दानी, धर्मधुरन्धर, श्रावकव्रतधारी और परम साधुभक्त था । श्रे० रामजी के आग्रह से श्रीमद् विजयदेवसूरिशिष्य साधुविजयशिष्य पं० हर्षविजयजी ने 'चैत्यपरिपाटि स्त०' ६ ढाल में रचा ।२
श्रेष्ठि रंगजी वि० सं० १७३६
बुनपुर में प्राग्वाटज्ञातीय वृद्धशाखीय रंगजी एक बड़े प्रसिद्ध श्रावक हो गये हैं । रंगजी ने श्रीमक्षीतीर्थ, श्री फलवर्धितीर्थ (फलौदी), श्री राणकपुरतीर्थ, श्री वरकाणातीर्थ, श्री अर्बुदाचलतीर्थ, श्री संखेश्वरपार्श्वनाथतीर्थ, श्री शत्रंजयतीर्थ की संघयात्रायें की और अपनी भजात्रों के बल से न्यायपूर्वक उपार्जित द्रव्य का अति ही सद्व्यय किया तथा वि० सं० १७३६ भाद्रपद शु० सप्तमी मंगलवार को भाग्यनगर में पं० श्री हर्षविजयगणि के शिष्य पं० प्रीतिविजयगणि के द्वारा अपने पुत्ररत्र चतुरशिरोमणि औदार्य, धैर्य, गाम्भीर्यादि गुणों से सुशोभित संघवी श्री गोडीदास के वाचन के अर्थ श्री 'माधवानलचतुष्पदी' नामक ग्रंथ की प्रति लिखवाई ।३
श्रेष्ठि लहूजी वि० सं० १७४३
ये अहमदाबाद में कालू संघवी की पोल में रहते थे। ये वृद्धशाखीय प्राग्वाटज्ञातीय थे । वि० सं० १७४३ श्रा० कृ० १३ गुरु को इनके पुत्र श्रे० वीरा ने 'अठारह-पापस्थानक' सञ्झाय लिखवाई ।४
१-प्र०सं०मा०२ पृ०२३० प्र०८५६ (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसत्र) और पृ०२३१ प्र०८७० (प्रश्मव्याकरण) २-० गु० क० मा०३ खं०२ पृ०१२७१. ३-प्र० सं० भा०२१०२५१ प्र०६४८ (माधवानलचतुष्पदी) ४-० गु० क०भा०३ खं०२५०१११८.