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खण्ड: विभिन्न प्रान्तों में प्राज्ञा० सद्गृहस्थों द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमायें-गूर्जर-काठियावाड़ और सौराष्ट्र-अहमदाबाद: [४५६ .
प्र० वि० संवत् प्र० प्रतिमा १० प्राचार्य प्रा० ज्ञा० प्रतिमा-प्रतिष्ठापक श्रेष्ठि सं० १५२० वै० कुन्थुनाथ तपा० लक्ष्मी- प्रा० ज्ञा० श्रे० अलवा भा० धरणादेवी के पुत्र रामचन्द्र शु० ३
सागरसूरि ने स्वभा० खेतादेवी, पुत्र जाणादि के सहित. सं० १५४७ वै० मुनिसुव्रत ......... वीरमग्रामवासी प्रा. ज्ञा. श्रे. सिंघा की स्त्री अमरीदेवी कृ. ८ रवि०
के पुत्र नत्थमल ने स्वभा० टबकूदेवी, पुत्र आना, शाणा,
सहुश्रा, भ्रात जावड़ादि के सहित. सं० १५५५ वै० अजितनाथ खरतरगच्छीय- प्रा० ज्ञा० श्रे० कर्मा की स्त्री अमरीदेवी के पुत्र श्रे.
जिनहर्षसूरि हीराचन्द्र ने स्वभा० हीरादेवी, पुत्र रामचन्द्र, भीमराज
आदि के सहित कड़िग्राम में. . सं० १५६४ ज्ये० शीतलनाथ तपा० जय- कर्णपुरवासी प्रा. ज्ञा० श्रे० केन्हा भा० चांईदेवी के पुत्र शु० १२
कल्याणपरि धरणा ने स्वभा० कडूदेवी, पुत्र, पुत्री के सहित स्वश्रेयोर्थ. सं० १५७२ फा. वासुपूज्य तपा० हेमविमल- पनानबासी प्रा०ज्ञा० श्रे० रत्नचन्द्र की स्त्री जासूदेवी के पुत्र कु०४ गुरु०
सरि माईश्रा ने स्वभा० हर्षादेवी, पु० सांडा के सहित सर्वश्रेयोर्थ. सं० १५७७ ज्ये० शीतलनाथ , अहमदाबादवासी प्रा. ज्ञा० श्रे० वरसिंह की खी रूडीदेवी शु०५
की पुत्री पूहूती नामा ने स्वपुत्र अजा, भा० धनादेवी प्रमुख
कुटुम्बीजनों के सहित. सं० १५८१ पौष संभवनाथ .. शिकंदरपुरवासी प्रा० ज्ञा० श्रे० धर्मा भा० धर्मादेवी के शु० ५ गुरु०
पुत्र पोपट ने स्वभा० प्रीमलदेवी,पु० कूरजी प्रमुख कुटुम्बीजनों
के सहित. सं० १६६३ वै० मुनिसुव्रत तपा० विजयदेव- प्रा० ज्ञा० श्रे० तेजपाल के पुत्र सहजपाल ने.
शु० ६ बुध० सं० १६६४ माघ श्रेयांसनाथ वृ०खरतरगच्छीय प्रा०ज्ञा० म० वेगढ़ की स्त्री चलहणदेवी के पुत्र देवचन्द्र ने
जिनचन्द्रसरि स्वभा० धनदेवी, पुत्र मुरारि, मुकुन्द,माण आदि के सहित. सं० १७२१ ज्ये० नेमिनाथ - तपा० विजयराज- सिरोहीवासी प्रा० ज्ञा० श्रे० महीजल के पुत्र सं० कर्मा ने.
शु०३ सं० १७८३ वै० नमिनाथ व. तपा० भुवन- शिकंदरपुरवासी प्रा० ज्ञा० श्रे० वाघजी की स्त्री नाथाकु० ५ गुरु०
कीर्तिरि बाई ने पुत्र पासवीर, समरसिंह के सहित.
श्रीअजितनाथ-जिनालय में (शेखजी का मोहन्ला) सं० १४३२ माघ सुविधिनाथ- वृद्धिसागरमरि पत्तनवासी प्रा० ज्ञा० श्रे० गोदा झांझण ने करवाया और पूर्णिमा गुरु० पंचतीर्थी
श्रे० नाला ने प्रतिष्ठित किया.
मूरि
जै०धा०प्र० ले० सं० भा०१ले०६६३,६३२,६२८,६४५,६२६,६२७,६८७,६६१,६२३,६६०,६७६,१०.०७॥