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श्रीबाई
.: प्राबाट - इतिहास ::
वंशवृच
मं० मणीराज
वीरादेवी
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• वेलराज [खदकूदेवी]
० शिवराज [ चंपादेवी ]
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मं० सहसराज [नाकूदेवी ] मं० सुरराज कीकादेवी
पुरादेवी मांकराज [१ अहंकारदेवी २ धनादेवी ]
बभूराज
श्रेष्ठि पचकल वि० सं० १६१६
प्राग्वाटज्ञातीय श्रीक्षेत्रनिवासी श्रे० जीवराज की धर्मपत्नी देसाई के पुत्र श्रे० मकरंद की धर्मपत्नी अमरदेवी के पुत्र श्रे० पचकल नामक सुश्रावक ने अपनी धर्मपत्नी लाडकुमारी, भ्राता श्रे० मंगल, कमल, हर्षराज प्रमुख कुटुम्ब सहित सहोदरा मानकुमारी के श्रेयार्थ श्री श्रागमगच्छीय श्री विवेकरत्नसूरि के पट्टालंकार गच्छाधीश श्री संयमरत्नसूरि के सदुपदेश से ज्ञानवृद्धि के निमित्त वि० सं० १६१६ वैशाख शु० ३ रविवार को श्री 'विपाकसूत्र' नामक ग्रंथ की प्रति लिखवाई |
वंशवृक्ष जीवराज [देसाई ] मकरंद [अमरादेवी ]
पचकल [लाडकुमारी] मंगल कमल हर्षराज मानकुमारी
[ तृतीय
*प्र० सं० भा० २५० ११२ प्र० ४२३ (विपाकसूत्र )