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.: प्राग्वाट-इतिहास:
[तृतीय
उदयपुर के श्री जिनालय में प्र० वि० संवत् प्र० प्रतिमा प्र० प्राचार्य प्रा० ज्ञा० प्रतिमा-प्रतिष्ठापक श्रेष्ठि सं० १५१० फा० मुनिसुव्रत- ......... प्रा. ज्ञा० श्रे० राजमल भार्या माणिकदेवी, श्रे० सहजादि शु० ११ चोवीशी
डभोई (दर्भवती) के श्री साभलापार्श्वनाथ-जिनालय में सं० १५०६ पौष नमिनाथ साधुपूर्णिमा- प्रा. ज्ञा० सं० श्रे० सारंग भा० सहिजूदेवी ने पुत्री काकी, कु०५रवि०
श्री सोमचन्द्रसरि भ्रातादि के सहित.
श्री लोढण-पार्श्वनाथ-जिनालय में चोवीशी सं० १५०६ वै० शांतिनाथ श्रीसरि सहुयालावासी प्रा०ज्ञा० श्रे० रत्ना की स्त्री,रत्नादेवी के पुत्र शु०६रवि०
मोखु की स्त्री मिणलदेवी के पुत्र धणसिंह, धरणि, गमदा भा० मागलदेवी, सुहीरुदेवी, हीरुदेवी, गलदेवी, धनसिंह भा० हांसलदेवी के पुत्र रामादि के पुत्र चांपा, लापा, नाथु,
भूभव ने स्वपितृ-मातृ-पितृव्य-भ्रातृ-श्रेयोर्थ.
श्री धर्मनाथ-जिनालय में सं० १३८३ माघ आदिनाथ श्री कनकसूरि प्रा० ज्ञा० श्रे० आसदेव ने स्वस्त्री लुणादेवी के पुत्र चाहड़, कृ.१ शुक्र०
ठहरा, खेता, रणमल, वीकल के श्रेयोर्थ. सं० १५०६ वै० शु० शांतिनाथ श्रीसूरि सहुयालावासी प्रा० ज्ञा० श्रे० मेघराज की स्त्री वीरमति ७ रवि०
के पुत्र लापा ने स्वभार्या लीलादेवी के श्रेयोर्थ. सं० १५१२ ज्ये० सम्भवनाथ नागेन्द्रगच्छीय- वलभीपुर-वासी प्रा. ज्ञा० श्रे० पटील हीरा की स्त्री देकुन शु० ५ रवि०
श्री विनयप्रभसूरि के पुत्र क्षमा ने पुत्र गदा, सदा, श्रीवंत के सहित स्वश्रेयोर्थ. सं० १५१५ माघ अजितनाथ तपा० श्री रत्न- गंधर-वासी प्रा. ज्ञा० सं० वयरसिंह की स्त्री जसदेवी के शु०७
शेखरसूरि पुत्र सं० नरपाल ने स्वभा० भर्मादेवी, पुत्र वर्द्धमान, भ्राता
सं० शीवराज भा० कर्मादेवी पुत्र वस्तुपालादि, पुत्री हर्षादेवी
के श्रेयोर्थ.
श्री मुनिसुव्रत-जिनालय में सं० १५०१ वै० सुमतिनाथ विजयतिलकसरि प्रा० ज्ञा० श्रे० बड़ा की स्त्री चापलदेवी पुत्र प्राशधर की
स्त्री रमकुदेवी ने पुत्र, पति और स्वश्रेयोर्थ.
___ श्री शांतिनाथ-जिनालय में । #. १५२५ वै० अजितनाथ तपा० लक्ष्मी- वीरमग्राम-वासी प्रा० ज्ञा० श्रे० सायर मा० डाई लीला
सागरसूरि के पुत्र हंसराज ने स्वभार्या रंगादेवी के श्रेयोर्थ. खं० प्रा०० ले० इति० ले०१३ । जै० धा० प्र०ले०सं०भा०१ले०७,४१,५१,४६, ५५, ५२,६७,७० ॥