________________
खण्ड ] :: न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले प्राज्ञा० सद्गृहस्थ-श्रा० सरणी : [३८६
श्रेष्ठि चांडसिंह का प्रसिद्ध पुत्र पृथ्वीभट
वि० सं० १३५४
विक्रम की तेरहवीं शताब्दी के अन्त में संडेरक नामक ग्राम में, जहाँ प्रसिद्ध महावीर-जिनालय विनिर्मित है प्राग्वाटज्ञातिश्रृंगार सुश्रावक श्रेष्ठिवर मोखू रहता था। उसकी धर्मपरायणा स्त्री का नाम मोहिनी था। श्रा. मोहिनी के यशोनाग, वाग्धन, प्रह्लादन और जाम्हण नामक चार अति गुणवान् पुत्र उत्पन्न हुये थे। __ श्रे० वाग्धन का विवाह सीतू (सीता) नामक रूपवती एवं गुणवती कन्या से हुआ था । श्रा० सीता के चांडसिंह नामक अति प्रसिद्ध पुत्र और खेतूदेवी, मजलादेवी, रत्नदेवी, मयणलदेवी और प्रीमलादेवी नामा निर्मलगुणा धर्मप्रिया पाँच पुत्रियाँ उत्पन्न हुई थीं।
श्रे० चाण्डसिंह की गौरीदेवी नामा स्त्री थी । श्रा० गौरीदेवी गुरुदेव की परमभक्ता और पतिपरायणा स्त्री थी। उसके पृथ्वीभट, रत्नसिंह, नरसिंह, चतुर्थमल, विक्रमसिंह, चाहड़ और मुंजाल नामक सात पुत्र उत्पन्न हुये और खोखी नामा एक पुत्री हुई । सातों पुत्रों की स्त्रियाँ स्वसा खोखी की सदा सेवा करने वाली क्रमशः सहवदेवी, सुहागदेवी, नयणादेवी, प्रतापदेवी, भादलादेवी, चांपलादेवी थीं। इनके कई पुत्र और पुत्रियाँ थीं। श्रे० पृथ्वीभट (पेथड़) ने वि० सं० १३५४ में गुरु रत्नसिंहसरि के सदुपदेश से श्री भगवतीस्त्रसटीक' अति द्रव्य व्यय करके लिखवाया था।' इस वंश का विस्तृत परिचय इस इतिहास के तृतीय खण्ड के पृ० २४६ से २५६ के पृष्ठों में आ चुका है ।।
महं० विजयसिंह वि० सं० १३७५
श्री 'विवेकविलास' नामक धर्मग्रंथ की एक प्रति प्राग्वाटज्ञातीय महं० विजयसिंह, महं० क्षीमाक ने वि० सं० १३७५ आश्विन शु० ६ बुद्धवार को दिल्लीपति कुतुबुद्दीनखिलजी के प्रतिनिधि साहमदीन के शासनकाल में लिखवाई ।२
श्राविका सरणी वि० सं० १४००
विक्रमीय चौदहवीं शताब्दी में धान्येरक (धानेरा) नामक ग्राम में प्रसिद्ध प्राग्वाटज्ञाति में उत्पन्न शोभित नामक श्रेष्ठि रहता था। वह राजा और प्रजा में बहुमान्य था। रूक्ष्मणी नामा उसकी पत्नी अति गुणवती, सुशीला थी। उसके तीन पुत्र और पाँच पुत्रियाँ हुई । ज्येष्ठ पुत्र वीरचन्द्र था, वह निर्मलगुणी एवं ख्यातनामा था । उसका विवाह राजिनी नामा अति गुणवती कन्या के साथ में हुआ था । वीरदेव और पूर्णपाल नामक दो अन्य पुत्र थे। प्रथम पुत्री सरणी नामा थी । सरणी कीर्तिवती एवं सुलक्ष्मी थी। उसका विवाह पासड़ नामक व्यवहारी३
१-D.C.M.P.(G.0.s.vo.LXXVI.)P. 248 (409) २-प्र०सं० द्वि० भा० पृ० २ प्र०४ (विवेकविलास) ३-जै० पु० प्र० सं० पृ० ७१-७२.३०७५ (उत्तराध्ययनसूत्र) D.C.M. P. (G.0. S.VO. LXXV1.) P. 333-5 (287)