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प्राग्वाट-इतिहास:
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[तृतीय
रतीय
मलयसिंह [साऊदेवी]
जठिल
सारंग जयंतसिंह खेतसिंह मेघा
। देऊ
। सारू
। । । धरणू उष्टम् पांचू
। सड़ी
। मान्
-
श्रेष्ठि महणा वि० सं० १४४७.
प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० खोखा के पुत्र श्रे० महणा की स्वपत्नी गोनीदेवी की पुत्री विलू श्राविका ने यात्रादि बहुपुण्यकार्य करने वाले सं० हरचन्द्र के साथ खंभात में भट्टारक श्री देवसुन्दरमरिगुरु के सदुपदेश से होने वाले अमयखूला नामा प्रवर्तिनी के पदस्थापनार्थ एवं श्री तीर्थयात्रा आदि के अर्थ आकर वि० सं० १४४७ में (सं० १४४६ फा० शु० १४ सोमवार) श्री सम्मतितर्कवृत्ति' की प्रति श्री स्तंभतीर्थ में ताड़ पत्र पर लिखवाई ।१
श्राविका स्याणी वि० सं० १४५०
प्राग्वाटज्ञातीय सुधर्मी व्यवहारी श्रे० देसल के पुत्र संघपति मेघा की स्त्री मिणलदेवी की कुक्षि से उत्पन्न पुण्यवती, गुणवती, श्राविका स्याणी नामा ने सुगुरु तपागच्छनायक श्रीमद् देवसुन्दरमरि के उपदेश से वि० सं० १४५० भाद्रपद शु० २ (कृ० १ शुक्र०) को अपने कल्याणार्थ श्री 'आचारांगसूत्रवृत्ति' नामक ग्रंथ की प्रति ताड़पत्र पर लिखवाई । स्याणी का पाणिग्रहण प्राग्वाटज्ञातीय गांधिक गोत्रीय श्रे० नरसिंह की गागलदेवी नामा स्त्री से उत्पन्न विश्रुत धर्णिग के साथ में हुआ था ।२
श्राविका कडू वि० सं० १५४१
विक्रमीय पन्द्रहवीं शताब्दी में फीलणी नामक ग्राम में प्राग्वाटवंशीय वैभवशाली श्रे० वज्रसिंह नामक श्रावक हो गया है। उसकी धर्मपत्नी कडूदेवी बड़ी ही धर्मपरायणा और शीलगुणसम्पन्ना स्त्री थी। कडूदेवी की कुक्षि से
१-० पु०प्र० सं० पृ०१४० प्र०३२३. D.C. M. P. (G. 0. S. Vo.LAX VI P.) 227 (369) प्र०सं०भा०१पृ०६२ (७) २-प्र०सं०मा०१पृ०८१ (ताड़पत्र) प्र०१२७ (आचारांगसूत्रवृत्ति) जै० पु०प्र०सं०७३-४ प्र०७८ (प्राचारागसूत्रवृत्ति) D.C. M. P. (G.O. S. Vo. LAKVI.) P. 243 (399)