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सर]:: न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले प्राशा० सद्गृहस्थ-० स्थिरपाल: [११
1 श्रीकुमार [अभयश्री]
छाड़
यशोमट्ट
सान्हाक
बोडका
सोभा [सौभाग्यवती] सोला
गदा [१रनिदेवी रश्रियादेवी]
कर्मा
भीमा [रुक्मिणी]
जसा
डूबर
वीझी
तीन्ही
श्री
श्रेष्ठि स्थिरपाल वि० सं० १४१८
जाबालिपुर दुर्ग में प्राग्वाटज्ञातिशृंगार धणदेव नामक सुश्रावक हो गया है । उसके सहजलदेवी नाम की 2 स्त्री थी। उसके ब्रह्माक और लींबा नाम के दो पुत्र थे। श्रे० लींबा की स्त्री गौरदेवी थी, जिसके कडुसिंह नाम का पुत्र था । कडुसिंह की स्त्री का नाम भी कडुदेवी ही था । कडुदेवी की कुक्षि से धरणाक नामक पुत्र हुआ।
___ श्रे० ब्रह्माक के झंझण नामक पुत्र था, जो अति गुणी और धर्मात्मा था। वह सचमुच ही प्राग्वाटवंशशिरोमणि था । उसके आशाधर नाम का पुत्र था। श्रे० आशाधर के गोगिल नाम का श्रेष्ठ पुत्र हुआ। श्रे
1D.C.M.P. (G.O. S.VO. LXXVT.) P. 345 2P. 344-345