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खण्ड] :: तीर्थ एवं मन्दिर में प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थों के देवकुलिका-प्रतिमाप्रतिष्ठादिकार्य-श्री कुम्भारियातीर्थ :: [ ३०५
गूर्जर-महाबलाधिकारी दंडनायक विमलशाह ने जब चन्द्रावती के राज्य को जीता था, उसको पुष्कल द्रव्य प्राप्त हुआ था । इतना ही नहीं आरासणपुर के निकट के पर्वतों में सुवर्ण की अनेक खानें भी थीं । उसने उन खानों से प्रचुर मात्रा में सुवर्ण निकलवाया और अनेक धर्मस्थानों में उसका व्यय किया । ऐसा कहा जाता है कि विमलशाह ने आरासणपुरतीर्थ में ३६० तीन सौ साठ जिनमन्दिर बनवाये थे। खैर इतने नहीं भी बने हों, परन्तु यह तो निश्चित है कि आरासणपुर के जैनमंदिरों के निर्माण के समय दण्डनायक विमलशाह विद्यमान था। आरासणपुर अर्थात् कुम्भारियातीर्थ के वर्तमान जैनमन्दिर जो संख्या में पाँच हैं, कोराई और कारीगरी में अबंदाचलस्थ विमलवसतिकाख्य श्री आदिनाथ-जिनालय की बनावट से बहुत अंशों में मिलते हैं । स्तम्भों की बनावट, गुम्बजों की रचना, छत्त में की गई कलाकृतियाँ, पट्टों एवं शिलापट्टियों पर उत्कीर्णित चित्र दोनों स्थानों के अधिकतर आकार-प्रकार एवं वास्तु-दृष्टि से मिलते-से हैं । कुम्भारियातीर्थ के मन्दिरों में विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी के कई एक लेख भी हैं। इन कारणों से अधिक यही सम्भावित होता है कि इनका निर्माता सम्भवतः दण्डनायक विमलशाह ही है। इतना अवश्य है कि कुम्भारियातीर्थ के मन्दिरों का निर्माण और उनकी प्रतिष्ठा सम्भवतः विमलवसति के निर्माण और उसकी प्रतिष्ठा के पश्चात् हुई है।
___ इस समय कुम्भारिया में १ श्री नेमिनाथ-जिनालय, २ श्री पार्श्वनाथ-जिनालय, ३ श्री महावीर-जिनालय, ४ श्री शान्तिनाथ-जिनालय और ५ श्री सम्भवनाथ-जिनालय है । प्रथम चार जिनालय तो अति विशाल और चौवीस देवकुलिकायुक्त हैं और कलादृष्टि से विमलवसति और लुणवसति से किसी भी प्रकार कम नहीं हैं । पाँचवा जिनालय छोटा है । पांचों जिनालय उत्तराभिमुख हैं ।
प्रा० ० ले० सं० भा०२ का अनुवादविभाग पृ०१६५ से १८४ श्री कुम्भारियाजी उर्फे पारासण (जयंतविजयजीलिखित)
ता०२१-६-५१ को मैंने श्रीकुम्भारियाजीतीर्थ की यात्रा की थी और वहाँ के कतिपय लेखों को शब्दान्तरित किया था। उनके आधार पर उक्त वर्णन दिया गया है। (अ) श्री महावीरजिनालय के मूना० प्रतिमा के शासनपट्ट का लेख 'ॐ ॥ संवत् १११८.फाल्गुन सुदी : सोमे । आरासणाभिधाने स्थाने तीर्थाधिपस्य प्रतिमा कारिता'
०प्र० ० ले० सं० ले०३ (ब) श्री शांतिनाथ-जिनालय के एक प्रतिमा का लेख ॐ।। संवत् ११३८ धोग (?) वल्लभदेवीसुतेन वीरकश्रावकेन श्रेयांसजिनप्रतिमा कारिता
श्र० प्र० ० ले० सं० ले०४ (स) श्री पार्श्वनाथ-जिनालय की एक प्रतिमा के पासनपट्ट का लेख,
॥ संवत् ११६१ थिरापद्रीयगच्छे श्री शीतलनाथबिंबं (कारित) । (द) श्री नेमिनाथजिनालय की एक प्रतिमा का लेख
___'संवत् ११६१ वर्षे.........
जबकि अर्बुदाचलस्थ विमलवसति की प्रतिष्ठा वि० सं०१०८८ में हुई है और उसमें भारासणपुर की खान का प्रस्तर लगा है। अतः यह बहुत संभवित है कि श्रारासणपुर के जैनमंदिरों में विमलशाह के ही अधिकतम बनवाये हुये मंदिर हों, क्योंकि वह अनन्त धनी और प्रभुप्रतिमा का अनन्य भक्त था ।