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खण्ड ]
:: श्री जैन श्रमण संघ में हुये महाप्रभावक आचार्य और साधु - खरतरगच्छीय कविवर समयसुन्दर :: [ ३७१
कविवर ने संमेतशिखर, चंपा, पावापुरी, फलोधी, नाडोल, बीकानेर, अर्बुदाचल, गौड़ी, वरकाणा, जीरावला, शंखेश्वर, अंतरीक्ष, गिरनार आदि तीर्थों की यात्रायें की थीं और जैसलमेर में आप कई वर्षों तक रहे थे । जैसलमेर के महा राउल भीम ने आपके सदुपदेश से सांड का वध करना अपने राज्य में बंध किया था ।
अनेक प्रांतों में अधिक समय तक विचरण और निवास करने से कविवर समयसुन्दर को अनेक प्रान्तीय भाषाओं से परिचय हुआ, जो हम उनकी रचनाओं में स्पष्ट देखते हैं। उनकी रचनाओं में गूर्जर-भाषा के शब्दों कविवर का साहित्यसेवियों के अतिरिक्त राजस्थान, फारसी आदि शब्दों का भी प्रयोग है । कवि यद्यपि साधु थे, में स्थान फिर भी उनका प्रकृतिप्रेम और उससे अद्भुत परिचय जो हमको उनके फुटकल पद्यों में मिलता है सिद्ध करता है कि उनका अनुभव विस्तृत एवं अगाध था और ऐसे चारित्रवान् महान् विद्वान् साधु का प्रकृति से सीधा तादात्म्य सिद्ध करता है कि प्रकृति शुद्ध और सदा मुक्त है, जो आध्यात्मिक जीवन को बढ़ाती और बनाती है । जैसे ये जिनेश्वर के भक्त थे, वैसा ही उनका उत्कृष्ट अनुराग सरस्वती, गुरु, माता-पिता
के प्रति भी था ।
कविवर की भाषा प्रांजल, मधुर, सरल और सुन्दर है । इन्होंने धार्मिक विषयों, तीर्थङ्करों, तीर्थों के अतिरिक्त सामाजिक विषयों पर भी अनेक फुटकल रचनायें की हैं। इनकी रचनाओं में कथा, वार्त्ता और इतिहास है तथा धर्म की प्ररूपणा है । इनकी वसंत विहार, वसंत-वर्णन, अतृप्त स्त्री, नगर-वर्णन, दुकाल-वर्णन रचनायें भी अधिक चित्ताकर्षक हैं । कविवर को देशियों और दालों से भी अधिक प्रेम था । ये संगीत के अच्छे ज्ञाता एवं प्रेमी थे । ये सर्वतोमुखी प्रतिभासम्पन्न कवि थे एवं व्याख्याता थे । श्रीमद् जिनचन्द्रसूरि ने इनको वाचकपद प्रदान किया था । संस्कृत, प्राकृत, गूर्जरभाषा पर भी इनका अच्छा अधिकार था । स्थानाभाव के कारण तुलनात्मक दृष्टि से इनका पूरा २ साहित्यिक-मूल्यांकन करना यहाँ असम्भव और प्रासांगिक भी प्रतीत होता है । ये श्रावककवि ऋषभदास के समकालीन थे । ऋषभदास इनके प्रबल प्रशंसक थे ।
कविरचित स्तवनः
शत्रुजे ऋषभ समोसर्या भला गुण भर्या रे, सिद्धा साधु अनन्त, तीरथ ते नमु रे । तीन कल्याण तिही यथ, मुगतें गया रे, नमीश्वर गिरनार, तीरथ ते नमु रे । अष्टापद एक देहरो, गिरि-सेहरो रे, भरतें भराव्या चिंब - ती०
चौमुख प्रति भलो, त्रिभुवनतिलो रे, विमल-वसई वस्तुपाल. समेत शिखर सोहामणो, रलियामणो रे, सिद्धा तीर्थंकर वीश, नयरीचंपा निरखियेरे, हैये हरखियेरे, सिद्धा श्री वासुपूज्य. पूर्वेदिशे पावापुरी, ऋद्धि भरी रे, मुक्ति गया महावीर, जैसलमेर जुहारिये, दुःख वारी येरै, अरिहंतबिंब अनेक. विकानेर ज वंदीये, त्रिरनंदी येरे, अरिहंत देहरा आठ, सेरिसरो शंखेश्वरो, पंचासरो रे, फलोधी थंमण पास, अंतरिक अंजाव अमीजरो रे, जीरावलो जगनाथ, त्रैलोक्यदीपक देहरो, जात्रा करो रे, राणपुरे रिसदेश.
श्री नाडुलाई जादव, गोड़ी स्तवोरे, श्री वरकारणो पास, नंदीश्वर देहरी, बावन भलारे, रुचककुंडले चार चार,