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विविध काव्यगीत१. नलदमयन्ती ५. अक
8. माननिवारण
१३. अतिलोभनिवारण
१७. निंदानिवारण
२१. स्वार्थ
२५. घड़ियाला
२६. नाव
३३. संदेह
३७. क्रियाप्रेरण
४१. निरंजनध्यान
४२. दुःषमकाल में संयम - पालन
भण्डारों का जब शोधन होगा, अनुमान है कि कवि की और कृतियों का पता लगेगा। फिर भी उपलब्ध कृतियों की सूची पूरी २ दी गई है ।
सं० १६४६ लाहौर
सं० १६६२ सांगानेर
:: प्राग्वाट - इतिहास ::
सं० १६६८ मुलतान
सं० १६८१ जैसलमेर,
लोद्रवपुर, शत्रुंजय सं० १६६१ खंभात
२. जिनकुशलसूर
६. स्थूलभद्रजी
१०. मोहनिवारण
१४. मनशुद्धि
१८. हुँकार निवारण
२२. पार की होड़निवारण
२६. उद्यमभाग्य
३०. जीवदया
३. ऋषभनाथ
७. गौतमस्वामी
११. मायानिवारण
१५. जीव - प्रतिबोध
१६. कामिनी - विश्वास २३. जीवव्यापार
२७. मुक्तिगमन
३१. वीतराग - सत्यवचन
३५. परमेश्वरपृच्छा
३४. सूता - जगावय ३८. परमेश्वरस्वरूपदुर्लभता ३६. जीवकर्मसम्बन्ध
मेवाड़, मरुधर, गुजरात, काठियावाड़, पंजाब, संयुक्त प्रदेश आदि उत्तर भारत के प्रमुख प्रान्तों में उन्होंने गुरु एवं अपनी शिष्यमण्डली के साथ में विहार और चातुर्मास किये थे । वि० सं० १६४६ तक तो वे गुजरातhaar का विहारक्षेत्र एवं भूमि में ही विचरण करते रहे । परन्तु सम्राट् अकबर के निमंत्रण पर जब वे अपने चातुर्मास और विविध प्री- प्रगुरु श्रीमद् जिनचन्द्रसूरि के साथ में सम्राट् अकबर से मिलने के लिये लाहौर गये थे, तीय भाषाओं से परिचय तब उनको मारवाड़, मेवाड़ और आगराप्रान्तों में होकर जाना पड़ा था। वि० सं० १६४६ में जाबालिपुर में गुरु के साथ चातुर्मास रहे थे। इस प्रकार इस यात्रा में अनेक नगर, ग्रामों के श्री संघों से परिचय बढ़ा । फलस्वरूप विहार में रुचि बढ़ी। अनेक तीर्थो कीं यात्रायें कीं और अनेक नगर, ग्रामों में रहकर रचनायें कीं । उन्होंने जिन स्थानों पर रचनायें कीं और रचना के कारण अधिक समय पर्यंत निवास किया, उन स्थलों की सूची मय सम्वत् के इस प्रकार हैं:
सं० १६५८ श्रहमदाबाद
सं० १६६५ आगरा
सं० १६७२-७३-७४ मेड़ता
सं० १६८२ नागौर
सं० १६८५ लूणकर्णसर
सं० १६६६ अहमदाबाद
[ तृतीय
४. सनत्कुमार
८. क्रोधनिवारण
१२. लोभनिवारण
१६. आर्चिनिवारण २०० जीवनट २४. घड़ीलाखीणी
२८. कर्म
३२. मरणभय
३६. भणनप्रेरण
४०. परमेश्वरलय
सं० १६५६ खंभात
सं० १६६७ मरोट
सं० १६७६ राणकपुर
सं० १६८३ मेड़ता
सं० १६८७ पाटण
सं० १६६८ अहमदपुर