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.: प्राग्वाट-इतिहास ::
। तृतीय
कविवर की अंतिम कृति वि० सं० १७०० की है। इससे सिद्ध है कि कवि का स्वर्गवास वि० सं० १७०० के लगभग हुआ है । इस प्रकार कविवर लगभग अस्सी वर्ष का श्रायु भोग कर स्वर्ग सिधारे। उनकी साहित्यिक कविवर का शिष्य-समुदाय सेवाओं का प्रभाव उनके शिष्य समुदाय पर भी अमिट पड़ा। उनका हर्षनंदन नामक और स्वर्गारोहण. शिष्य अति विख्यात् विद्वान् एवं प्रभावक हुआ। हर्षनंदन ने ख० सुमतिकल्लोल की सहायता से 'स्थानांग-आगम' की गाथाओं पर १३६०४ श्लोकों की एक वृत्ति रची। इनका प्रशिष्य उपाध्याय हर्षकुशल भी बड़ा विद्वान् था । उन्नीसवीं शताब्दी तक इनकी शिष्य-परंपरा अखंड रूप से विद्यमान रही ।*
श्री पूर्णिमागच्छाधिपति श्रीमद् महिमाप्रभसूरि दीक्षा वि० सं० १७१६. स्वर्गवास वि० सं० १७७२
गूर्जरभूमि के धाणधारप्रान्त में आये हुये पालणपुर नगर के पास में गोला नामक एक ग्राम है। वहाँ प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० वेलजी रहते थे। उनकी स्त्री का नाम अमरादेवी था। अमरादेवी की कुक्षि से दो पुत्र और
__एक पुत्री हुई थी। चरित्रनायक का नाम मेघराज था और ये सब से छोटे पुत्र थे । वंश-परिचय
इनका जन्म वि० सं० १७११ आश्विन कृ. ६ मघा नक्षत्र में हुआ था। जब इनकी आयु चार वर्ष की हुई माता अमरादेवी का स्वर्गवास हो गया । श्रे० वेलजी का गृहस्थ-जीवन एकदम दुःखपूर्ण हो गया । बड़ा पुत्र अलग हो गया और पुत्री का विवाह हो जाने से वह अपने श्वसुरालय में चली गई। दुःखी पिता वेलजी और लघु शिशु मेघराज को भोजन बनाकर भी कोई देने वाला नहीं रहा। श्रे० वेलजी अधिकाधिक दुःखी रहने लगा। निदान वेलजी ने दुःख को भूलने के लिये यात्रा करने का निश्चय किया और शिशु पुत्र मेघराज को ले कर वि० सं० १७१७ में यात्रार्थ निकल पड़े। अणहिलपुरपत्तन में पहुँच कर दंदेरवाड़ा के श्री महावीरजिनालय में दोनों पिता-पुत्रों ने प्रभुप्रतिमा के भावपूर्वक दर्शन किये और तत्पश्चात् उपाश्रय में जाकर श्रीमद् ललितप्रभसूरि के पट्टधर श्रीमद् विनयप्रभसरि को सविनय सविधि वंदना की। उक्त आचार्य का उपदेश
*शाश्वती अशाश्वती, प्रतिमा छती रे स्वर्ग मृत्यु पाताल, तीरथयात्रा फल तिहा, होजो मुज इहरि, समय सुन्दर कहे ऐम, सेरीसर-गुजरात में कल्लोल के पास में. शंखेश्वर-श्रणहिलपुरपत्तन से २० मील. थंभण-खंभात में, फलोधी-मेडता (मारवाड) रोड़ से १० मीन. अंतरिक्ष-पार्श्वनाथ-आकोला से ४० मील. अजाबरो (अजाहरो)-काठियावाड़ में उनाग्राम के पास में, अमीजरापार्श्वनाथ-दुश्रा में (पालणपुरस्टेट) जीरावला-पार्श्वनाथ । वरकाणा । नाडुलाई। राणकपुरतीर्थ। ] मारवाड़ में
भावनगर में हुई गु० सा०प० के सातवें अधिवेशन के अवसर पर श्रीयुत् मोहनलाल दलीचन्द देसाई द्वारा लिखे गये निबंध 'कविवर समयसुन्दर' के आधार पर ही तैयार किया गया है। निबंध प्रति विस्तृत और पूरे श्रम से तैयार किया गया था। मैं निबंधकर्ता का अत्यन्त आभारी हूं कि जिनके श्रम ने मेरे श्रम को बचाया। देखो, जैन साहित्य संशोधक अंक ३ खं०२ पृ०१ से ७१