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प्राग्वाट-इतिहास :
[ तृतीय
आचार्य श्री विजयदानसरिजी के करकमलों से ही तृतीय देवकुलिका को लाछलदेवी के पुत्र रामदास, करणसिंह और सहसकिरण के श्रेयार्थ प्रतिष्ठित करवाई ।१
उपरोक्त शाह गोविन्द, शाह थाथा और कोठारी छाछा के प्राप्त वर्णनों से सिद्ध होता है कि वि० सं० १६०३ माघ कृ. ८ को पींडवाड़ा में महाप्रसिद्ध विजयदानमूरिजी के कर-कमलों से देवकलिकाओं की प्रतिष्ठा करवाई जाने के निमित्त महामहोत्सव का आयोजन किया गया था और अति धूम-धाम से प्रतिष्ठाकार्य पूर्ण किया गया था।
श्री नाडोल और श्री नाङ्कलाई (नडुलाई) तीर्थ में प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थों के देवकुलिका-प्रतिमाप्रतिष्ठादि कार्य
श्रेष्ठि मूला
वि० सं० १४८५ वि० संवत् १४८५ बैशाख शु० ३ बुधवार को श्रे० समरसिंह के पुत्र दो० धारा की स्त्री सुहवदेवी के पुत्र महिपाल की स्त्री माल्हणदेवी के पुत्र मूलचन्द्र ने पितृव्य धर्मचन्द्र और भ्राता माइआ तथा पिता महिपाल के श्रेयार्थ श्री सुविधिनाथविंब को श्री तपागच्छीय श्रीमद् सोमसुन्दरसूरिजी के करकमलों से प्रतिष्ठित करवाया। यह प्रतिमा नाडोल के अति भव्य एवं सुप्रसिद्ध श्री पद्मप्रभुजिनालय में स्थापित है ।२ .
श्रेष्ठि साल
वि० सं० १५०८ १ वि० संवत् १५०८ वैशाख कृ० १३ को श्रे० जगसिंह के पुत्र सं० केन्हा, कडुआ, हेमा, माला, जयंत, रणसिंह
और लाखा भार्या ललितादेवी के पुत्र साडूल ने स्वस्त्री वाल्हीदेवी, पुत्र नरसिंह, नगा आदि कुटुम्बीजनों के सहित कई चतुर्विंशति जिनप्रतिमायें करवाई, जिनकी प्रतिष्ठा तपागच्छीय श्रीसोमसुन्दरमरि के पट्टालंकार श्रीमद् रत्नशेखरसरि ने श्री मेदपाटदेशीय देवकुलपाटक में की थी । एक शांतिनाथचौवीसी नाडोल के सुप्रसिद्ध श्री पद्मप्रभुजिनालय में विराजमान है । इसी ही शुभावसर पर अर्बुदगिरि, श्री चंपकमेरु, चित्रकूट, जाउरनगर, कायद्राह, नागहृद, भोसवाल, श्री नागपुर, कुभलगढ़, देवकुलपाटक, श्री कुण्ड आदि सुप्रसिद्ध तीर्थ एवं स्थानों के लिये दो दो प्रतिमायें भेजने के लिये भी इन्होंने प्रतिष्ठित करवाई थीं ऐसा उक्त चौवीसी के लेख से आशय निकलता है ।३ ।
१-० ले० सं० भा०१ ले०६४७,६४८, ६५०. २-३प्रा० ० ले० सं०भा०२ ले० ३६८,३७२.