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:: तीर्थादि के लिये प्रा० झा० सद्गृहस्थों द्वारा की गई संघयात्रायें--श्रे० नथमल ::
संघपति हीरा की श्री अर्बुदगिरितीर्थ की संघयात्रा
वि० सं० १६०३ विक्रम की सोलहवीं शताब्दी में प्राग्वाटज्ञातीय वृद्धशाखीय शाह जीवराज हो गया है। शाह जीवराज की स्त्री का नाम पाल्हाईदेवी था। इनके श्रे० हीरजी नामक पुत्ररत्न हुआ । श्रे० हीरजी अति श्रीमंत, साधुसाध्वियों का परम भक्त और धर्मात्मा श्रावक था। उसने वि० सं० १६०३ पौष शुक्ला १ गुरुवार को श्री पाल्हणपुरीयगच्छ के पण्डित श्री संघचारित्रगणि के शिष्य श्री महोपाध्याय विमलचारित्रगणि के उपदेश से श्री अर्बुदाचलतीर्थ की यात्रा करने के लिये श्री चतुर्विध संघ निकाला और अपने और पूर्वजों द्वारा न्याय से उपार्जित द्रव्य का सदुपयोग किया । इस संघयात्रा में उपरोक्त पाल्हणपुरीयगच्छ के उपाध्याय श्री विमलचारित्रगणि अपने शिष्य माणिक्यचारित्र, ज्ञानचारित्र, हेमचारित्र, शवधर और धर्मधीर तथा शिष्यिणी प्रवर्तिनी विद्यासुमति, रत्नसुमति प्रमुख परिवार के सहित विद्यमान थे। संघयात्रा में एक सौ से ऊपर वाहन थे। गूर्जरज्ञातीय मंत्री नरसिंह की स्त्री लीखादेवी का पुत्र भाणेज मंत्री थाक्रजी, उसकी स्त्री पकुदेवी तथा उनकी पुत्रियाँ जावणी और लालाबाई, श्रीमालज्ञाति के शृंगारस्वरूप संघवी रूपचन्द्र, संघवी देवचन्द्र, संघवी सहसकिरण, श्रीमल्लमलजी
आदि अनेक प्रतिष्ठित श्रावक अपने कुटुम्बसहित सम्मिलित हुये थे। श्रे० हीरा ने अपने पुत्र देवजी और पारू तथा अपने प्रमुख कुटुम्ब के साथ में साधु और साधियों तथा संघ के समस्त श्रावक, श्राविकाओं को श्री अर्बुदाचलतीर्थ की यात्रा करवाई और इस प्रकार बहुत द्रव्य व्यय करके अपने पूर्वज, माता, पिता तथा कुटुम्ब के कल्याणार्थ संघ निकाल कर अपने द्रव्य का सदुपयोग किया ।१
हरिसिंह की संघयात्रा भीमसिंह लुणिया, प्राग्वाटज्ञातीय हरिसिंह, ब्रह्मदेव ने चतुर्विध श्री श्रमणसंघ के साथ में श्री अर्बुदाचलतीर्थ की यात्रा की थी। श्रेष्ठि नथमल की अर्बुदगिरितीर्थ और अचलगढ़तीर्थ की यात्रा
वि० सं० १६१२ प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० नथमल के पुत्र श्रे० भीमराज और चारु ने क्रमशः अपने २ पुत्र पेथड़सिंह, कृष्ण और नरसिंह के साथ में वि० सं० १६१२ मार्गशिर कृष्णा ह शुक्रवार को श्री अर्बुदगिरितीर्थ और अचलगढ़तीर्थ की दुष्काल पड़ने के कारण यात्रा की थी। इस यात्रा में इनके साथ में अन्य श्रावकगण भी थे, जिनके नाम इस प्रकार हैं:____सा० जोधा, कर्मसिंह पुत्र रणसिंह, और देवा, स० भीम, छीतर पुत्र सगण, स० सोना, बालीदास पुत्र पं० कर्मा, काला पुत्र कला, छीतर, देपाल पुत्र नवा, माका और महेश का पुत्र हरिपति । इन सर्व ने समुदाय बना कर बड़ी धूम-धाम से यात्रा की थी।३
अ० प्रा० ० ले० सं०भा० २ ले० २१४-२१५'। २८६ । १७८३