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खण्ड] :: तीर्थ एवं मन्दिरों में प्रा० झा० सद्गृहस्थों के देवकुलिका प्रतिमाप्रतिष्ठादिकार्य--श्री कुम्भारियातीर्थ :: [३०७
श्री नेमिनाथ चैत्यालय में
श्रेष्ठि आसपाल
वि० सं० १३१० वि० सम्वत् १३१० वैशाख कृ. ५ गुरुवार को प्रा०ज्ञा० श्रे० बील्हण और माता रूपिणीदेवी के श्रेयार्थ पुत्र आसपाल ने सिद्धपाल, पद्मसिंह के सहित आरासणनगर में श्री अरिष्टनेमिजिनालय के मण्डप में श्री चन्द्रगच्छीय श्री परमानन्दसरि के शिष्य श्रीरत्नप्रभसूरि के सदुपदेश से एक स्तंभ की रचना करवाई ।१
श्रेष्ठि वीरभद्र के पुत्र-पौत्र
वि० सं० १३१४ वि० सं० १३१४ ज्येष्ठ शु. २ सोमवार को आरासणपुर में विनिर्मित श्री नेमिनाथ-चैत्यालय में बृहद्ग़च्छीय श्री शान्तिमूरि के शिष्य श्री रत्नप्रभसूरि श्रीहरिभद्रसूरि के शिष्य श्रीपरमानन्दसूरि के द्वारा प्रा०ज्ञा० श्राविका रूपिणी के पुत्र वीरभद्र स्त्री विहिदेवी, सुविदा स्त्री सहजू के पुत्र-पौत्रों ने रत्नीणी, सुपद्मिनी, भ्रा. श्रे. चांदा स्त्री प्रासमती के पुत्र अमृतसिंह स्त्री राजल और लघुभ्राता आदि परिजनों के श्रेयार्थ श्री अजितनाथ-कायोत्सर्गस्थदो प्रतिमा करवाई।
श्रेष्ठि अजयसिंह
वि० सं० १३३५ वि० सम्वत् १३३५ माघ शु. १३ शुक्रवार को प्राज्ञा. श्रे. सोमा की स्त्री माल्हणदेवी के पुत्र श्रे. अजयसिंह ने अपने पिता, माता, भ्राता और अपने स्वकल्याण के लिये भ्राता छाड़ा और सोढ़ा तथा कुल की स्त्रियाँ वस्तिणी, राजुल, छाबू, धांधलदेवी, सुहड़ादेवी और उनके पुत्र वरदेव, झांझण, आसा, कडुआ, गुणपाल, पेथा
आदि समस्त कुटुम्बीजनों के सहित बृहद्गच्छीय श्री हरिभद्रसूरि के शिष्य श्री परमानन्दसूरि के द्वारा नेमिनाथजिनालय में देवकुलिका विनिर्मित करवाकर उसमें श्री अजितनाथबिंब को प्रतिष्ठित करवाया ।३
श्रेष्ठि आसपाल
वि० सं० १३३८ आरासणाकरवासी प्राज्ञा० श्रे० गोना के वंश में श्रे० आमिग हुआ। आमिग की स्त्री रत्नदेवी थी । रत्नदेवी* के तुलाहारि और आसदेव दो पुत्र थे । आमिग के भ्राता पासड़ का पुत्र श्रीपाल था। आसदेव की स्त्री का नाम सहजूदेवी था । श्रे० प्रासदेव के आसपाल और धरणिग दो पुत्र थे। श्रे० आसपाल ने स्वस्त्री आशिणी, स्वपुत्र लिंबदेव, हरिपाल तथा भ्राता धरणिग के कुटुम्ब के सहित श्री मुनिसुव्रतस्वामीबिंब अश्वावबोधशमलिकाविहारतीर्थोद्धारसहित करवाकर वि० सम्वत् १३३८ ज्येष्ठ शु. १४ शुक्रवार को श्री नेमिनाथ-चैत्यालय में संविज्ञविहारि श्री चक्रेश्वरसूरिसंतानीय श्री जयसिंहमूरि के शिष्य श्री सोमप्रभसूरि के शिष्य श्री वर्द्धमानसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। इस आसपाल ने अपने और अपने भ्राता के समस्त कुटुम्ब के सहित श्री अवुदगिरितीर्थस्थ
अ०प्र० ० ले.सं० ले०'२४,२६१२८ *०प्र० ० ले०सं०ले०३१और अप्रा० ० ले०सं०भा०२ ले०२६७ में वर्णित वंश एक ही है।