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खण्ड]
: तीर्थ एवं मन्दिरों में प्रा०मा० सद्गृहस्थों के देवकुलिका-प्रतिमाप्रतिष्ठादिकार्य-श्री अचलगढ़तीर्थ ::
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स्त्रियाँ थीं । वरजदेवी की कुक्षी से रत्नसिंह और नायकसिंह नामक दो पुत्र उत्पन्न हुये और स्वरूपदेवी के खेतसिंह पुत्र उत्पन्न हुआ।
वि० सं० १६४७ फाल्गुन शु० ५ गुरुवार को श्री तपागच्छाधिराज, सम्राट्झकवरदत्तजगद्गुरुविरुदधारक भट्टारक श्री विजयहीरसूरीश्वर के उपदेश से श्री धरणविहारप्रासाद में सुश्रावक सा० खेतसिंह, नायकसिंह ने ज्येष्ठ पुत्र यशवंतसिंह आदि कुटुम्बीजनों के सहित अड़तालीस (४८) स्वर्णमुद्रायें व्यय करके पूर्वाभिमुख द्वार की प्रतोली के ऊपर का भाग विनिर्मित करवाया।
वि० सं० १६५१ वैशाख शु० १३ को उक्त प्राचार्य श्री के सदुपदेश से ही खेतसिंह और नायकसिंह ने अपने कुटुम्बीजनों के सहित पूर्वाभिमुख द्वार की प्रतोली से लगा हुआ अति विशाल, सुन्दर, एवं सुदृढ़ मेघमण्डप अपने कल्याणार्थ सूत्रधार समल, मांडप और शिवदत्त द्वारा विनिर्मित करवाया।
- वि० सं० १६५१ ज्येष्ठ शु० १० शनिश्चर को तपागच्छाधिपति श्रीमद् विजयसेनसूरि के करकमलों से रत्नसिंह और नायकसिंह ने अपने भ्राता सा० खेतसिंह आदि तथा भावज सा० वरमा आदि कुटुम्बियों के सहित श्री महावीरबिंब को श्री महावीरदेवकुलिका का निर्माण करवा कर उसमें प्रतिष्ठित करवाया।
श्री अचलगढ़स्थ जिनालयों में प्रा०ज्ञा० सद्गृहस्थों के देवकुलिका प्रतिमाप्रतिष्ठादि कार्य
श्री चतुर्मुख-आदिनाथ-जिनालय में
श्रेष्ठि दोसी गोविन्द
वि० सं० १५१८ प्राग्वाटज्ञातीय दोसी दूंगर की स्त्री धापुरी के कर्मा, करणा और गोविन्द तीन पुत्र थे । संभवतः श्रे० डूंगर कुम्भलमेर का रहने वाला था। वि० सं० १५१८ वैशाख कृ. ४ शनिश्चर को कुंभलमेरदुर्ग में तपागच्छीय श्री रत्नशेखरसूरि के पट्टधर श्री लक्ष्मीसागरसूरि के द्वारा धातुमय श्री नेमिनाथबिंब की प्रतिष्ठा ज्येष्ठ भ्राता कर्मा की स्त्री करणुदेवी के पुत्र आशा, अखा, अदा तथा द्वि० ज्येष्ठ भ्राता करणा की स्त्री कउतिगदेवी के पुत्र सीधर (श्रीधर) तथा स्वभार्या जयतूदेवी और स्वपुत्र वाछा आदि कुटुम्बीजनों के सहित माता तथा भ्राताओं के श्रेयार्थ कुंभलगढ़ के जिनालय में स्थापित करवाने के अर्थ से करवाई। यह मूर्ति चतुर्मुखप्रासाद के सभामण्डप के दांयी ओर की देवकुलिका में मूलनायक के स्थान पर विराजमान है।
श्रेष्ठि वणवीर के पुत्र
वि० सं० १६६८ विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी में सिरोही (राजस्थान) में प्राग्वाटजातीय वृद्धशाखीय शाह गांगा रहता था। उस समय सिरोही के राजा श्री अक्षयराज थे और उनके श्री उदयभाण नाम के महाराजकुमार थे। शाह
अ० प्रा० जै० सं०भा०२ ले०४७५