________________
खण्ड] :: श्री साहित्यक्षेत्र में हुए महाप्रभावक विद्वान् एवं महाकविगण-महाकवि श्रीपाल और उसके पुत्र-पौत्र :: [२२१
१(६) 'शतार्थी'–महाकवि ने एक श्लोक के १०० अर्थ करके अपनी विद्वता एवं कल्पनाशक्ति का इस कृति द्वारा सफल परिचय करवाया है । सचमुच यह कृति श्रीपाल को महाकवियों में अग्रगण्य स्थान दिलाने वाली है ।
(७) श्रीपालकृत २४ चौवीस तीर्थंकरों की २६ पद्यों की स्तुति', यह स्तुति उपलब्ध है । शेष बड़नगरप्रशस्ति के अतिरिक्त कोई कृति उपलब्ध नहीं है ।२
वादी देवसरि के गुरुभ्राता आचार्य विजयसिंह के शिष्य हेमचन्द्र ने 'नाभेय-नेमि-संधान' नामक एक काव्य रचा है, जिसका संशोधन महाकवि श्रीपाल ने किया था ।
महाकवि पर जैसी कृपा महाप्रतापी गूर्जरेश्वर सिद्धराज जयसिंह की रही, वैसी ही कृपा उसके उत्तराधिकारी अठारह प्रदेशों के स्वामी परमार्हत सम्राट् कुमारपाल की रही। यह स्वयं साधु एवं संतों का परम भक्त एवं जिनेश्वर भगवान् का परमोपासक था । कवि एवं विद्वानों का सहायक एवं आश्रयदाता था। इसके सिद्धपाल नामक पुत्र था । जो इसके ही समान सद्गुणी, महाकवि और गौरवशाली युरुष था ।
___महाकवि सिद्धपाल यह योग्य पिता का योग्य पुत्र था। साधू एवं संतों का सेवक तथा साथी था। कवि और विद्वानों का सहायक, समर्थक, पोषक था । यह जैसा उच्च कोटि का विद्वान् था, वैसा ही उच्चकोटि का दयालु सद्गृहस्थ सिद्धपाल का गौरव और , भी था । सम्राट् कुमारपाल की इस पर विशेष प्रीति थी और यह उसकी विद्वद्-मण्डली प्रभाव
में अग्रगण्य था । सन्नाट कभी कभी शांति एवं अवकाश के समय इससे निवृत्तिजनक १- अर्थानुक्रम से- सिद्धराज १, स्वर्ग २. शिव ३, ब्रह्मा ४, विष्णु ५, भवानिपति ६, कार्तिकेय ७, गणपति ८, इन्द्र, वैश्वानर १०, धर्मराज ११, नैऋत १२, वरुण १३, उपवन १४, धनद १५, वशिष्ठ १६, नारद १७, कल्पद्रम १८, गंधर्व १६, दिव्यभ्रमर २०, देवाश्च २१, गरूड़ २२, हरसमर २३, जिनेन्द्र २४, बुद्ध २५, परमात्मा २६, माख्यपुरुष २७, देव-२८, लोकायतपुरुष २६, गगनमार्ग ३०, आदित्य ३१, सोम ३२, अंगारक ३३, युद्ध ३४, बृहस्पति ३५, शनिश्चर ३७, वरुण ३८, रेवन्त ३६, मेष ४०, धर्म ४१, अर्क ४२, कामदेव ४३, मेरु ४४, कैलाश ४५, हिमालय ४६, मंदराद्रि ४७, भूभार ४८, समुद्र - ४६, परशुराम ५०, दाशरथी ५१, बलभद्र ५२, हनुमान ५३, पार्थपार्थिव ५४. युधिष्ठिर ५५, भीम ५६, अर्जुन ५७. कर्णवर ५८, रस ५६, रससिद्धि ६०, रसोत्सव ६१, अवधूत ६२, पाशुपतमुनि ६३, ब्राह्मण ६४. कवि ६५, अमात्य ६६, नौदंडाध्यक्ष विज्ञप्तिका ६७, दूतवाक्य ६८, वर्चरक ६६, वीरपुरुप ७०, नृपराज ७१,नृपतुरंग ७२, वृषभ ७३, करम ७४, जलाशय ०५, दुदुर ७६,भाराम ७७, सिंह ७८, सवृक्ष ७६, सार्थवाह ८०, सायंत्रिक ८१, सत्पुरुष ८२, वेश्यापति ८३, शरत्समय ८४, सिद्धाधिपयुद्ध ८५, प्रति पक्ष ८६, वरणायुद्ध ८७, चोर ८८, जार,प्ट, दुर्जन ६०, शवर ६१, रसातलगम ६२, कमगाधिप६३, महावराह ६४, शेष ६५, वासुकि ६६, कनकचूला ६७ बलिदैत्य ६८, दिग्गज ६६, सारस्वत '१००.
श्री अगरचन्द्र नाहटा का लेख.
जै०स०प्र० वर्ष०११ अंक १०-११०२८६-७ २-'श्री दुर्लभसरोराजे तथा रुद्रमहालये । अनिर्वाच्यरसैः काव्यैः प्रशस्तिकरोदसौ ॥ महाप्रबन्धं चक्रे च वैरोचनपराजयम् । विहस्य सद्भिरन्यो ऽपि नैवास्य तु किमुच्यते ॥
५० चि० म० तृ० १० १०३) पृ०६४, चालुक्यवंशाना लेखो पृ०४१ बड़नगर प्रशस्ति नं०१४७.
H. I.G.pt.॥