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:: प्राग्वाट-इतिहास ::
[तृतीय
महाराणा कुम्भकर्ण बड़े ही प्रतापी, यशस्वी, गुणी राजा थे। उनके दरबार में सदा गुणवानों और पुण्यात्माओं का स्वागत होता रहता था। ऐसे गुणी राजा की राज्यसभा में अगर संघवी धरणाशाह का मान दिनमहाराणा कुम्भकर्ण की दुगुना रात-चौगुना बढ़ा हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। महाराणा कुम्भकर्ण का राज्यसभा में सं० धरणा राज्य अजमेर, मंडोर, नागपुर, गागरण, बंदी तथा खाटू, चाटू तक विस्तृत था। फलतः उनके दरबार में अनेक वीर, योद्धा, श्रीमन्त, सज्जन व्यक्ति रहते थे। सं० धरणा महाराणा कुम्भकर्ण के अति विश्वासपात्र एवं राज्य के अति प्रतिष्ठित श्रीमन्त व्यक्तियों में गिने जाने लगे थे ।*
परमार्हत सं० धरणाशाह का राणकपुर में नलिनीगुल्मविमान त्रैलोक्यदीपक-धरणविहार
नामक चतुमुख-आदिनाथ-जिनप्रासाद का बनवाना
जैसा लिखा जा चुका है सं० धरणा बुद्धिमान, चतुर और बड़ा नीतिज्ञ था, वैसा ही वह दृढ़ जैनधर्मी, गुरुभक्त और जिनेश्वरदेव का उपासक भी था । वह बड़ा तपस्वी भी था । उसने बत्तीस वर्ष की युवावस्था में ही शीलवत
. ग्रहण कर लिया था और नवीन २ जिनप्रासाद बनवाने की नित्य कल्पना किया सं० धरणा को स्वप्न का होना
करता था। एक रात्रि को उसने स्वप्न में नलिनीगुल्मविमान को देखा और नलिनीगुल्मविमान के आकार का एक जिनप्रासाद बनवाने का उसने स्वप्न में निश्चय भी कर लिया और अपने निश्चय की अपने परिजनों के समक्ष चर्चा की । विमान तो उसको स्मरण रह गया, परन्तु उसका नाम उसको स्मरण नहीं रहा; अतः वह यह नहीं समझा सका कि वह कैसा जिनालय बनवाना चाहता है। फलतः उसने दूर २ से अनेक चतुर शिल्पविज्ञ कार्यकरों (कारीगरों) को बुलवाया । आये हुये कार्यकरों ने अनेक मन्दिरों के भांति-भांति के रेखाचित्र बना-बना कर धरणाशाह को दिखाये । उनमें से मुंडाराग्राम के रहने वाले शिल्पविज्ञ देपाक नामक सोमपुरा ने नलिनीगुल्मविमान का रेखाचित्र बनाकर प्रस्तुत किया । सं० धरणा ने देपाक को अपना प्रमुख कार्यकर नियुक्त किया।
*सं० धरणा महाराणा कुम्मकर्ण का मन्त्री रहा हो, ऐसा कोई प्रामाणिक उल्लेख प्राप्त नहीं हुआ है । सं० धरणा महाराणा के दरबार में अति सम्मानित व्यक्ति अवश्य थे, जो राणकपुर की प्रशस्ति से ही स्पष्ट सिद्ध होता है । (१७) महीपति ४० कुल काननपंचाननस्य । विषमतमाभंगसारंग- (१८) पुर नागपुर गागरण नराणकाऽजयमेरु मंडोर मंडलकर बुदि (१६) खाटू चाटू सजानादि नानामहादुर्गलीलामात्रग्रहणप्रमाणि- (३०).........."राणाश्रीकुम्भकर्णसर्वोवीपतिसार्वभौमस्य ४१ विजय(३१) मान राज्ये" ........... .... (३२"""
...... ....." श्रीमदहम्मद(३३) सुरत्राणदत्तपुरमाणसाधुश्रीगुणराजसंघपतिसाहाचर्यकृताश्च- (३४) र्यकारिदेवालयाडम्बरपुरःसरश्रीशत्रजयादितीर्थयात्रेण । अजा(३५) हरी पिंडरवाटकसालेरादि बहुस्थाननवीनजनविहारजीणोंद्धार- (३६) पदस्थापनाविषमसमयसत्रागारनानाप्रकारपरोपकार श्रीसंघस(३७) त्काराद्यगण्यपुण्यमहार्थक्रयाणकपूर्यमाणभवार्णवतारणक्षम
प्रा० ० ले० सं० मा० २ ले० ३०७ (राणकपुरतीर्थप्रशस्ति,)