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प्रतिष्ठोत्सव के समाप्त हो जाने पर श्री आचार्यपदोत्सव को बहुत द्रव्य व्यय अपने तथा अपने परिजनों के श्रेयार्थ निम्मवत् है:
वि० सं०
१४६८ फा० कृ० ५
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१५०७ चै० कृ० ५
१५०८ चै० शु० १३
१५०६ वै० शु० २
१५०६ ० शु० २
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:: प्राग्वाट - इतिहास ::
तृतीय
सोमदेव वाचक को आचार्यपद प्रदान किया गया । सं० धरणाशाह ने करके मनाया । प्रतिष्ठोत्सव के समय तथा पश्चात् संघवी धरणाशाह द्वारा विनिर्मित एवं प्रतिष्ठित करवाई गई प्रतिमाओं और परिकरों की सूची१-२
दिशा
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आचार्य
प्रतिमा
प्रथम खण्ड की मूलनायक - देवकुलिका में
सोमसुन्दर
आदिनाथसपरिकर
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रत्नशेखरसूरि
99
19
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रत्नशेखर
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17
द्वितीय खण्ड की देवकुलिका में.
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श्रादिनाथसपरिकर
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परिकर
तृतीय खण्ड की देवकुलिका में
परिकर
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पश्चिमाभिमुख
दक्षिणाभिमुख
पूर्वाभिमुख
उत्तराभिमुख
पश्चिमाभिमुख
उत्तराभिमुख
पूर्वाभिमुख
पश्चिमाभिमुख
दक्षिणाभिमुख
पूर्वाभिमुख
उत्तराभिमुख
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इस धरणविहारतीर्थ में सं० धरणाशाह का अन्तिम कार्य मूलनायक देवकुलिका के ऊपर द्वितीय खण्ड में प्रतिष्ठित पूर्वाभिमुख प्रतिमा का परिकर तथा तृतीय खण्ड के परिकर हैं, जिनको वि० सं० १५०६ वै० शु० २ को रत्नशेखरसूरि के करकमलों से स्थापित करवाये थे । इससे यह सम्भव लगता है कि वि० सं० १५१०-११ में सं० धरणाशाह 'स्वर्गवासी हुआ ।
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१ - उपरोक्त संवतों से यह तो सिद्ध है कि सं० धरणा वि० सं० १५०६ में जीवित था । तथा उक्त तालिका से यह भी सिद्ध होता है कि धरणविहार का निर्माणकार्य धरणाशाह की मृत्यु तक बहुत कुछ पूर्ण भी हो चुका था - जैसे मूलनायक त्रिमंजली युगादिदेवकुलिका का निर्माण और चारों सभामण्डपों की तथा चारों सिंह द्वारों की प्रतोलियों की (पोल) रचना, परिकोष्ठ में अधिकांश देवकुलिकाओं और उनके आगे की स्तंभवतीशाला (वरशाला) तथा अन्य अनिवार्यतः आवश्यक ङ्गों का बनना आदि ।
२ - मेरे द्वारा संग्रहित लेखों के आधार पर ।
एक कथा ऐसी भी प्रचलित है कि मुण्डारा निवासी सोमपुरा देपाक एक साधारण ज्ञानवाला शिल्पकार था । सं० धरणाशाह द्वारा निमन्त्रित कार्यकरों में वह भी था । देपाक को रात्रि में देवी का स्वप्न हुआ, क्यों कि वह देवी का परम भक्त था । देवी ने देपाक को कहा