________________
२६४]
:: प्राग्वाट-इतिहास:
[तृतीय
सं० १५१६ वासुपूज्य उदयवल्लभसूरि श्रे० काला स्त्री माल्हणदेवी के पुत्र अर्जुन ने स्वस्त्री देऊ भ्राता सं० ज्ये.कृ.६.शनि.
भीमा स्त्री देवमती पुत्र हरपाल स्त्री टमकू सहित स्वश्रेयार्थ* सं० १५६६ चन्द्रप्रभ द्विवंदनीक श्राविका हेमवती के पुत्र देवदास ने स्त्री देवलदेवी सहित* माष. कृ.६ ग० ककसरि
बड़े मन्दिर में सं० १५७२ संभवनाथ नागेन्द्र० जूनागढ़वासी दोसी सहिजा के पुत्र भरणा की स्त्री कूमटी के पुत्र चहु वै.शु. १३ सोम. चौवीशी गुणवर्द्धनमरि ने स्त्री वल्हादेवी के सहित स्वश्रेयार्थ और पितृश्रेयार्थ *
जगद्गुरु श्रीमद् विजयहीरसरिजी के सदुपदेश से श्री आदिनाथदेव-जिनालय में पुण्यकार्य
वि० सं० १६२०
श्रेष्ठि कोका श्रीआदिनाथ-मुख्यजिनालय के द्वार के दाँयी ओर जो देवकुलिका है, उसको वि० सं० १६२० वै० शु० २ को गंधारनिवासी श्रे० पर्वत के पुत्र कोका के सुपुत्र ने अपने कुटुम्बीजनों के सहित तपागच्छीय श्रीमद् विजयदानमूरि और जगद्गुरु विजयहीरसूरि के सदुपदेश से प्रतिष्ठित करवाई थी।
श्रेष्ठि समरा इसी मुख्य जिनालय के उत्तर द्वार के पश्चिम में दाँयी ओर आई हुई जो शांतिनाथ-देवकुलिका है, उसको वि० सं० १६२० वै० शु० ५ गुरुवार को गंधारनगरनिवासी व्य० श्रे० समरा ने स्वपत्नी भोलीदेवी, पुत्री वेरथाई और कीबाई आदि के सहित तपा० श्रीमद् विजयदानसूरि और श्रीमद् विजयहीरसूरि के सदुपदेश से प्रतिष्ठित करवाई थी।
श्रेष्ठि जीवंत इसी मुख्यमंदिर की दीवार के समक्ष ईशानकोण में जो पार्श्वनाथ-देवकुलिका है, उसको वि० सं० १६२० वै. शु० ५ गुरुवार को श्रीमद् विजयदानसूरि और विजयहीरसूरि के सदुपदेश से गंधारवासी सं० जावड़ के पुत्र सं० सीपा की स्त्री गिरसु के पुत्र जीवंत ने सं० काउजी, सं० आढुजी प्रमुख स्वभ्राता आदि कुटुम्बीजनों के सहित प्रतिष्ठित करवाई थी।
____ उपरोक्त संवत् एवं दिन के कुछ अन्य लेख भी प्राप्त हैं। इससे सिद्ध होता है कि गंधारनगर से कई एक सद्गृहस्थ जगद्गुरुविरुदधारक श्रीमद् विजयहीरसूरिजी की अधिनायकता में श्री शत्रुजयतीर्थ की यात्रा करने के
ज० ले०सं० भाले०६६१,६६७,६७७ प्रा० जै० ले० सं० भा०२ ले०६,८,६