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: प्राग्वाट - इतिहास ::
वीरप्रसविनी मेदपाटभूमीय प्राग्वाट वंशावतंस सं० रत्ना धरणा का वंश-वृक्ष
सं० रत्ना [रत्नादेवी ]
सं. लाखा
सं० सांगण
सं० कुरपाल (कुंवरपाल) [कामलदेवी अपरनाम कपूरदेवी]
जीणा
सं. सलखा सं. मना सं. सोना सं. सालिग [ १ सुहागदेवी २नायकदेवी] जाखा
सं. सहसा [१ संसारदेवी २ अनुपमादेवी ]
I
देवराज
आशा [आसलदेवी]
[
सत्त
सं० धरणा के वंशज
सं धरा [धारलदेवी]
T खींमराज [१रमादेवी २ कर्पूरदेवी ]
जयमल
[ तृतीय
मनजी
जावड़
राणकपुर नगर कुछ ही वर्षों पश्चात् उजड़ हो गया । सं० धरणा और रत्नाशाह का परिवार सादड़ी में, जो राणकपुर से ठीक उत्तर में ७ मील अन्तर पर बसा है जा बसा । फिर सादड़ी से सं० धरणा का परिवार घाणेराव में और सं० रत्ना का परिवार मांडवगढ़ ( मालवप्रान्त की राजधानी) में जा बसा । घाणेराव में रहने वाले १ शाह नथमल माणकचन्द्रजी, २ चन्दनमल रत्नाजी, ३ छगनलाल हंसाजी, ४ हरकचन्द्र गंगारामजी, ५ नथमल नवलाजी,
प्रा० जै० ले० सं० भा० २ लेखांक ३०७ में 'मांगण' छपा है, परन्तु मूललेख- प्रस्तरपट्ट में 'सांगण' है । श्र० प्रा० जै० ले० सं० भा० २ लेखांक ४६४.
अचलगढ़ में विनिर्मित श्री चतुर्मुख-ऋषभदेव मन्दिर के सं० सहसा के वि० सं० १५६६ के लेख सं० ४६४ में सं० रत्ना के पुत्र लाषा के पश्चात् सलधा उल्लिखित है। यह नाम राणकपुरतीर्थ की प्रशस्ति में नहीं है - विचारणीय है ।