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:: प्राग्वाट-इतिहास:
[द्वितीच
श्रेष्ठि मंडलिक वि० सं० ११६१
प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० पूनढ़ की स्त्री तेजूदेवी की कुक्षी से श्रे. मंडलिक नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। • मंडलिक ने अमहिलपुरसत्तनाधीश्वर गुर्जरसम्राट सिद्धचक्रवर्ती श्री जयसिंह के राज्यकाल में कि० सं० ११६१ फाल्गुण शु० १ शनैश्चरवार को भद्रबाहुस्वामीकृत 'आवश्यकनियुक्ति' की प्रति लिखवाकर ज्ञान-मंडार में स्थापित करवाई।।
श्रेष्ठि वैल्लक और श्रीष्ठि वाजक
वि० सं० ११६६
विक्रम की बारहवीं शताब्दी में प्राग्वाटज्ञातीय श्रे वकुल अत्यन्त ही प्रसिद्ध धर्मात्मा पुरुष हुआ है । वह बड़ा ही संतोषी और उदार था । उसकी निर्मल बुद्धि की प्रशंसा दूर २ तक फैली हुई थी। वैसी ही गुणवती एवं सीता के सदृश पतिपरायणा लक्ष्मीदेवी नामा उसकी धर्मप्रिया थी। दोनों धर्मिष्ठ पति-पत्नी के वैल्लक, वाजक (या वीजल) और वीरनाग नामक तीन अत्यन्त गौरवशाली पुत्र हुये थे। श्रे० वैल्लक कमल के समान हृदय का निर्मल, कुलकीर्ति का आधार, मधुरभाषी, साधुमना, दानवीर और परमदयालु श्रावक था । श्रे० वैल्लक का छोटा भ्राता वाजक भी सद्धर्मसेवी, बुद्धिमान, संतोषी, ज्ञानाभ्यासी, प्रसन्नाकृति, परहितरत और जिनेश्वरदेव का परमोपासक था। तृतीय वीरनाग भी महागुणी, धर्मात्मा एवं सज्जनहृदयी था। इनके वैल्लिका नामा भगिनी थी और इनके पिता वकुल की बहिन जाउदेवी नामा इनकी भुवा थी। श्रे० वैल्लक की स्त्री का नाम शितदेवी था, जो अति ही सुशीला, हृदयसुन्दरा और विवेकमती थी। श्रे० वाजक के दो स्त्रियाँ चाहिणी और शृंगारदेवी नामा थीं।
दोनों भ्राता श्रे० वैल्लक और वाजक ने वि० सं० ११६६ आश्विन कृष्ण पक्ष में रविवार को श्री देवभद्रसरिरिचित 'श्री पार्श्वनाथ-चरित्र' को गौड़गोत्रीय आशापल्लीवासी कायस्थ कवि सेल्हण के पुत्र कवि वल्लिग द्वारा ताड़पत्र पर लिखवाया 12
1-D. C. M. P. (G. O. S Vo. No. LXXVI) P. 55 2-D.C.M.P. (G.O.S.Vo. LXXVI) P. 219, 220. (365)