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खण्ड] :: न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले प्रा०ज्ञा० सद्गृहस्थ-श्रे० यशोदेव : [२२७
श्रोष्ठिः यशोदेव वि० सं० १२१२
विक्रम की बारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में अति गौरवशाली, विश्रुत, यशस्वी एवं राजमान्य प्राग्वाटवंश में बनीहिल नामक एक रूपातनामा श्रावक हो गया है । उसके धनदेव नामक अति गुणवान् और मितभाषी पुत्र था । धनदेव की स्त्री इन्दुमती थी, जो सचमुच ही नरलोक में चन्द्रिका की प्रतिमा थी। इन्दुमती के गुणरत्न नामक यशस्वी पुत्र हुआ । गुणरत्न का पुत्र यशोदेव था। यशोदेव अपने पूर्वजों की ख्याति और कुल के गौरव को बढ़ाने वाला हुआ । वि० सं० १२१२ आषाढ़ कृष्णा १२ गुरुवार को श्रीमद् धर्मधोषमुरि की निश्रामें रहकर विद्या प्राप्त करने वाले उनके शिष्यशिरोमणि तथा श्रीमद् विमलसूरि के शिष्य श्रीमद् चन्द्रकीर्तिगमि ने 'श्रीसिद्धान्तसारसमुच्चय' नामक ग्रन्थ लिखा, जिसकी प्रति यशोदेव ने देवप्रसाद नामक लेखक से ताड़पत्र पर लिखवाई।
___ यशोदेव के प्रांवि नाम की स्त्री थी। वह अति उदारहृदया थी। सती के समस्त गुण उसमें विद्यमान थे। उसकी कुक्षी से उधरण, आंबिग और वीरदेव नामक तीन पुत्र और सोली, लोली और सोखी नामा तीन पुत्रियाँ उत्पन्न हुई।
वंश-वृच वनीहिल
धनदेव [इन्दुमती]
गुणरत्न
यशोदेव [वि
- उधरन
आम्बिग
वीरदेव
सोली
लोली
सोखी
प्र०सं० प्र०भा०ता० प्र०४१पृ. ३५ (श्री सिद्धान्तसारसमुच्चय) .
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