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:: प्राग्वाट-इतिहास:
[द्वितीय
उपकेशज्ञातीय तथा श्रीमालज्ञातीय कुटुम्बों ने अपने और अपने कुटुम्बीजनों के श्रेयार्थ धर्मकृत्य करवा कर अपना जीवन और द्रव्य सफल किया।
महा० वस्तुपाल द्वारा श्री मल्लिनाथ-खत्तक का बनवाना
वि० सं० १२७८ श्री विमलवसतिका नामक श्री आदिनाथ-जिनालय के गूढमण्डप के दाहिने पक्ष में महामात्य वस्तुपाल ने वि० सं० १२७८ फाल्गुण कृ० ११ गुरुवार को अपने ज्येष्ठ भ्राता श्री मालदेव के श्रेय के लिये खत्चक बनवा कर उसमें श्री मल्लिनाथ-प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाया।
श्री सांडेरकगच्छीय श्रीमद् यशोभद्रसूरि
विक्रम शताब्दी दशवीं-ग्यारहवीं
प्राग्वाट-प्रदेश के रोही-प्रगणा के पलासी नामक ग्राम में प्राग्वाटज्ञातीय यशोवीर नामक श्रेष्ठि रहता था । उसकी सुभद्रा (गुणसुन्दरी) नाम की स्त्री अत्यन्त ही धर्मनिष्ठावती थी। उसकी कुक्षी से वि० सं० ६४७-६५७ वंश-परिचय और आपका में एक महाप्रतापी बालक उत्पन्न हुआ, जिसका नाम सौधर्म रक्खा गया । सौधर्म बचपन बचपन
में ही अत्यन्त कुशाग्रबुद्धि था। वह अपनी वय के बालकों में सदा अग्रणी रहता था । उसकी वाणी और उसकी बालचेष्टायें महापुरुषों के बचपन की स्मरण कराती थीं । सौधर्म जब तीन वर्ष का ही था कि वह पाठशाला में बिठा दिया गया था। पांच वर्ष की वय में ही उसने पाठशाला का अध्ययन समाप्त कर लिया।
उसके अनेक साथियों में एक ब्राह्मणबालक भी था। वह बडा तेजस्वी और हठी था। सौधर्म के हाथ एक दिन उस ब्राह्मणलड़के की दवात फूट गई। इस पर उस ब्राह्मणलड़के ने हठ पकड़ी कि मैं वैसी ही दवात लूगा। गुरु और लड़कों के समझाने पर भी उसने अपनी हठ नहीं छोड़ी। जब वैसी दवात नहीं मिली
और सौधर्म नहीं दे सका तो उस ब्राह्मणबालक ने क्रोध में आकर प्रतिज्ञा की कि मैं मन्त्र-बल से तेरे कपाल की दवात नहीं करूँ तो ब्राह्मणपुत्र नहीं। इस पर सौधर्म को भी क्रोध आ गया और उसने भी प्रतिज्ञा की कि मैं तेरे मन्त्रबल को विफल नहीं कर डालूँ तो मैं भी चतुर वणिकपुत्र नहीं । इस प्रकार सौधर्म में प्रारंभ से ही निडरता, निर्भीकता थी।
१-१० प्रा० ० ले० सं०भा० २ ले०६
२-श्री ज्ञाननन्दिगणि द्वारा वि० सं०१६८३ में रचित संस्कृत-चरित्र में पिता का नाम पुण्यसार और माता का नाम गुणसुन्दरी लिखा है। नाडूलाई के श्री श्रादिनाथ-मन्दिर के वि० सं०१५६७ के लेख में पिता का नाम यशोवीर और माता का नाम सुभद्रा लिखा है, जो अपेक्षाकृत अधिक प्राचीन है और अधिक विश्वसनीय है।
ए०रा० सं० भा० २ पृ० २१,३६