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खण्ड ]
:: अर्बुदगिरिस्थ श्री विमलवसति में अन्य प्राग्वाट बंधुओं के पुण्यकार्य - महं० वालम और धवल ::
विक्रम की बारहवीं शताब्दी में प्राग्वाटज्ञातीय सदेव हो गया है । आसदेव की स्त्री का नाम देवकी था । देवकी की कृती से महं॰ बहुदेव, धनदेव, सूमदेव, जसहू और रामा नामा पाँच पुत्र उत्पन्न हुए ।
धनदेव के श्रा॰ वोल्हा और मीलाई (शिलाई ) नामा पत्नियाँ थीं । इन से धनदेव को वाल और धवल नामक दो पुत्ररत्न और शांतिमती नामा पुत्री की प्राप्ति हुई ।
महं० बहुदेव
महं० वालण और धवल वि० सं० १२०२
श्रे० ० वालण और धवल ने श्रीमद् ककुदाचार्य के करकमलों से अपने पिता धनदेव के श्रेयार्थ मू० ना० प्रथम देवकुलिका में श्री धर्मनाथबिंव और बहिन शांतिमती के श्रेयार्थ तीसरी देवकुलिका में मू० ना० श्री शांतिनाथ - बिंब की बड़े समारोह के साथ वि० सं० १२०२ आषाढ़ शु० ६ सोमवार को प्रतिष्ठा करवाई । १-२
इस प्रतिष्ठोत्सव के शुभावसर पर अन्य ज्ञातीय अनेक श्रावककुल भी उपस्थित हुए थे । उनमें से सूत्र • सोढ़ा की धर्मपत्नी साईदेवी के पुत्र सूत्र० केला, बोल्हा, सहव, लोयपा, बागदेव आदि ने कुंथुनाथप्रतिमा और ठ० अमरसेन के पुत्र महं० जाजू ने अपने पिता के श्रेयार्थ श्री अरनाथप्रतिमा और ठ० जसराज ने अपने पिता ठ० धवल के कल्याणार्थ श्री ऋषभनाथबिंब की श्री ककुदाचार्य के कर कमलों से ही प्रतिष्ठा करवा कर श्री विमलवसतिकातीर्थ में उनको स्थापित करवाया । ३
वालय
धवल
वंश-वृक्ष:श्रासदेव [देवकी]
धनदेव [१ वोल्हा, २ मीलाई ]
शान्तिमती
सूमदेव
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१ - श्र० प्रा० जै० ले० सं० भा० २ ले २४, २८
२ - प्रा० जै० ले० सं० भा० २ ले० १३६ में मिलाई के स्थान पर शिलाई लिखा है ।
३- श्र० प्रा० जै० ले० सं० भा० २ ले० ३४, ४०, ४५
जसहू
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रामा